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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


मन्दिर से लौटकर सारन्धा राजा चम्पतराय के पास गई और बोली-प्राणनाथ! आपने जो वचन दिया था उसे पूरा कीजिए। राजा ने चौंककर पूछा तुमने अपना वादा पूरा कर लिया? रानी ने वह प्रतिज्ञा-पत्र राजा को दे दिया। चम्पतराय ने उसे गौर से देखा, फिर बोले- अब चलूँगा और ईश्वर ने चाहा तो एक बार फिर शत्रुओं की खबर लूँगा; लेकिन सारन! सच बताओ इस पत्र से लिए क्या देना पड़ा?

रानी ने कुण्ठित स्वर में कहा बहुत कुछ।

राजा-सुनूँ?

रानी-एक जवान पुत्र।

राजा को बाण-सा लगा। पूछा-कौन? अंगदराय?

रानी-नहीं

राजा-रतनसाह?

रानी-नहीं।

राजा-छत्रसाल?

रानी-हाँ

जैसे कोई पक्षी गोली खाकर परों को फड़फड़ाता है और तब बेदम होकर गिर पड़ता है। उसी भाँति चम्पतराय पलंग से उछले और फिर अचेत होकर गिर पड़े। छत्रलसाल उसका परमप्रिय पुत्र था। उनके भविष्य की सारी कामनाएँ उसी पर अवलम्बित थीं। जब चेत हुआ, तो बोले- सारन, तुमने बुरा किया, अगर छत्रसाल मारा गया, तो बुन्देलवंश का नाश हो जायगा?

अँधेरी रात थी। रानी सारन्धा घोड़े पर सवार चम्पतराय को पालकी में बैठाये किले के गुप्त मार्ग से निकली थी। आज से बहुत साल पहले जब एक दिन ऐसी ही अँधेरी, दुःखमय रात्रि थी, सारन्धा ने शीतलादेवी को कुछ कठोर वचन कहे थे। शीतलादेवी ने उस समय जो भविष्यवाणी की थी, वह आज पूरी हुई। क्या सारन्धा ने उसका जो उत्तर दिया था, वह भी पूरा होकर रहेगा?

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