उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
खन्ना को कुतूहल हुआ। अब मालती अपने हाथों से खाना पकाने लगी है? मालती, वही मालती, जो खुद कभी अपने जूते न पहनती थी, जो खुद कभी बिजली का बटन तक न दबाती थी, विलास और विनोद ही जिसका जीवन था।
मुस्कराकर कहा–अगर आपने पकाया है, तो जरूर खाऊँगा। मैं तो कभी सोच ही न सकता था कि आप पाक-कला में भी निपुण हैं।
मालती निःसंकोच भाव से बोली–इन्होंने मार-मारकर वैद्य बना दिया। इनका हुक्म कैसे टाल सकती। पुरुष देवता ठहरे।
खन्ना ने इस व्यंग का आनन्द लेकर मेहता की ओर आँखें मारते हुए कहा–पुरुष तो आपके लिए इतने सम्मान की वस्तु न थी।
मालती झेंपी नहीं। इस संकोच का आशय समझकर जोश-भरे स्वर में बोली–लेकिन अब हो गयी हूँ; इसलिए कि मैंने पुरुष का जो रूप अपने परिचितों की परिधि में देखा था, उससे यह कहीं सुन्दर है। पुरुष इतना सुन्दर, इतना कोमल हृदय...
मेहता ने मालती की ओर दीन-भाव से देखा और बोले–नहीं मालती, मुझ पर दया करो, नहीं मैं यहाँ से भाग जाऊँगा।
इन दिनों जो कोई मालती से मिलता, वह उससे मेहता की तारीफ़ों के पुल बाँध देती, जैसे कोई नवदीक्षित अपने नये विश्वासों का ढिंढोरा पीटता फिरे। सुरुचि का ध्यान भी उसे न रहता। और बेचारे मेहता दिल में कटकर रह जाते थे। वह कड़ी और कड़वी आलोचना तो बड़े शौक से सुनते थे; लेकिन अपनी तारीफ सुनकर जैसे बेवकूफ बन जाते थे; मुँह जरा-सा निकल आता था, जैसे कोई फबती छा गयी हो। और मालती उन औरतों में न थी, जो भीतर रह सके। वह बाहर ही रह सकती थी, पहले भी और अब भी; व्यवहार में भी, विचार में भी। मन में कुछ रखना वह न जानती थी। जैसे एक अच्छी साड़ी पाकर वह उसे पहनने के लिए अधीर हो जाती थी, उसी तरह मन में कोई सुन्दर भाव आये, तो वह उसे प्रकट किये बिना चैन न पाती थी।
मालती ने और समीप आकर उनकी पीठ पर हाथ रखकर मानो उनकी रक्षा करते हुए कहा–अच्छा भागो नहीं, अब कुछ न कहूँगी। मालूम होता है, तुम्हें अपनी निन्दा ज्यादा पसन्द है। तो निन्दा ही सुनो–खन्नाजी, यह महाशय मुझ पर अपने प्रेम का जाल...शक्कर-मिल की चिमनी यहाँ से साफ नज़र आती थी। खन्ना ने उसकी तरफ देखा। वह चिमनी खन्ना के कीर्तिस्तम्भ की भाँति आकाश में सिर उठाये खड़ी थी। खन्ना की आँखों में अभिमान चमक उठा। इसी वक्त उन्हें मिल के दफ्तर में जाना है। वहाँ डायरेक्टरों की एक अर्जेंट मीटिंग करनी होगी और इस परिस्थिति को उन्हें समझाना होगा और इस समस्या को हल करने का उपाय भी बतलाना होगा।
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