उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
‘बिना दान-दहेज के बड़े आदमियों का कहीं ब्याह होता है पगली? बिना दहेज के तो कोई बूढ़ा-ठेला ही मिलेगा। जायगी बूढ़े के साथ?’
‘बूढ़े के साथ क्यों जाऊँ? भैया बूढ़े थे जो झुनिया को ले आये। उन्हें किसने कै पैसे दहेज में दिये थे?’
‘उसमें बाप-दादा का नाम डूबता है।’
‘मैं तो सोनारीवालों से कह दूँगी, अगर तुमने ऐसा पैसा भी दहेज लिया, तो मैं तुमसे ब्याह न करूँगी।’
सोना का विवाह सोनारी के एक धनी किसान के लड़के से ठीक हुआ था।
‘और जो वह कह दें, कि मैं क्या करूँ, तुम्हारे बाप देते हैं, मेरे बाप लेते हैं, इसमें मेरा क्या अख्तियार है?’
सोना ने जिस अस्त्र को रामबाण समझा था, अब मालूम हुआ कि वह बाँस की कैन है। हताश होकर बोली–मैं एक बार उससे कहके देख लेना चाहती हूँ; अगर उसने कह दिया, मेरा कोई अख्तियार नहीं है, तो क्या गोमती यहाँ से बहुत दूर है। डूब मरूँगी। माँ-बाप ने मर-मर के पाला-पोसा। उसका बदला क्या यही है कि उनके घर से जाने लगूँ, तो उन्हें कर्जे़ से और लादती जाऊँ? माँ-बाप को भगवान् ने दिया हो, तो खुशी से जितना चाहें लड़की को दें, मैं मना नहीं करती; लेकिन जब वह पैसे-पैसे को तंग हो रहे हैं, आज महाजन नालिश करके लिल्लाम करा ले, तो कल मजूरी करनी पड़ेगी, तो कन्या का धरम यही है कि डूब मरे। घर की जमीन-जैजात तो बच जायगी, रोटी का सहारा तो रह जायगा। माँ-बाप चार दिन मेरे नाम को रोकर सन्तोष कर लेंगे। यह तो न होगा कि मेरा ब्याह करके उन्हें जन्म भर रोना पड़े। तीन-चार साल में दो सौ के दूने हो जायँगे, दादा कहाँ से लाकर देंगे।
सिलिया को जान पड़ा, जैसे उसकी आँख में नयी ज्योति आ गयी है। आवेश में सोना को छाती से लगाकर बोली–तूने इतनी अक्कल कहाँ से सीख ली सोना? देखने में तो तू बड़ी भोली-भाली है।
‘इसमें अक्कल की कौन बात है चुड़ैल। क्या मेरे आँखें नहीं हैं कि मैं पागल हूँ। दो सौ मेरे ब्याह में लें। तीन-चार साल में वह दूना हो जाय। तब रुपिया के ब्याह में दो सौ और लें। जो कुछ खेती-बारी है, सब लिलाम-तिलाम हो जाये, और द्वार-द्वार भीख माँगते फिरें। यही न? इससे तो कहीं अच्छा है कि मैं अपनी ही जान दे दूँ। मुँह अँधेरे सोनारी चली जाना और उसे बुला लाना; मगर नहीं, बुलाने का काम नहीं। मुझे उससे बोलते लाज आयेगी। तू ही मेरा यह सन्देशा कह देना। देख क्या जवाब देते हैं। कौन दूर है? नदी के उस पार ही तो है। कभी-कभी ढोर लेकर इधर आ जाता है। एक बार उसकी भैंस मेरे खेत में पड़ गयी थी, तो मैंने उसे बहुत गालियाँ दी थीं। हाथ जोड़ने लगा। हाँ, यह तो बता, इधर मतई से तेरी भेंट नहीं हुई! सुना, बाह्मन लोग उन्हें बिरादरी में नहीं ले रहे हैं।
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