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गोदान’ (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :758
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8458
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।


मिर्ज़ा ने टोका–पुरुषों के जुल्म ने ही तो उनमें बगावत की यह स्पिरिट पैदा की है। मेहता बोले–बेशक, पुरुषों ने अन्याय किया है; लेकिन उसका यह जवाब नहीं है। अन्याय को मिटाइए; लेकिन अपने को मिटाकर नहीं।

मालती बोली–नारियाँ इसलिए अधिकार चाहती हैं कि उनका सदुपयोग करें और पुरुषों को उनका दुरुपयोग करने से रोकें।

मेहता ने उत्तर दिया–संसार में सबसे बड़े अधिकार सेवा और त्याग से मिलते हैं और वह आपको मिले हुए हैं। उन अधिकारों के सामने वोट कोई चीज नहीं। मुझे खेद है, हमारी बहनें पश्चिम का आदर्श ले रही हैं, जहाँ नारी ने अपना पद खो दिया है और स्वामिनी से गिरकर विलास की वस्तु बन गयी है। पश्चिम की स्त्री स्वच्छन्द होना चाहती है; इसीलिए कि वह अधिक से अधिक विलास कर सके। हमारी माताओं का आदर्श कभी विलास नहीं रहा। उन्होंने केवल सेवा के अधिकार से सदैव गृहस्थी का संचालन किया है। पश्चिम में जो चीजें अच्छी हैं, वह उनसे लीजिए। संस्कृति में सदैव आदान-प्रदान होता आया है; लेकिन अन्धी नकल तो मानसिक दुर्बलता का ही लक्षण है! पश्चिम की स्त्री आज गृह-स्वामिनी नहीं रहना चाहती। भोग की विदग्ध लालसा ने उसे उच्छृंखल बना दिया है। वह अपनी लज्जा और गरिमा को जो उसकी सबसे बड़ी विभूति थी, चंचलता और आमोद-प्रमोद पर होम कर रही है। जब मैं वहाँ की सुशिक्षित बालिकाओं को अपने रूप का, या भरी हुई गोल बाँहों या अपनी नग्नता का प्रदर्शन करते देखता हूँ, तो मुझे उन पर दया आती है। उनकी लालसाओं ने उन्हें इतना पराभूत कर दिया है कि वे अपनी लज्जा की भी रक्षा नहीं कर सकतीं। नारी की इससे अधिक और क्या अधोगति हो सकती है?  

राय साहब ने तालियाँ बजायीं। हाल तालियों से गूँज उठा, जैसे पटाखों की टटियाँ छूट रही हों।

मिर्ज़ा साहब ने सम्पादक जी से कहा–इसका जवाब तो आपके पास भी न होगा?

सम्पादक जी ने विरक्त मन से कहा–सारे व्याख्यान में इन्होंने यही एक बात सत्य कही है।

‘तब तो आप भी मेहता के मुरीद हुए।’

‘जी नहीं, अपने लोग किसी के मुरीद नहीं होते। मैं इसका जवाब ढूँढ़ निकालूँगा, ‘बिजली’ में देखिएगा।’

‘इसके माने यह है कि आप हक की तलाश नहीं करते, सिर्फ अपने पक्ष के लिए लड़ना चाहते हैं।’

राय साहब ने आड़े हाथों लिया–इसी पर आपको अपने सत्य-प्रेम का अभिमान है।

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