उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
होरी ने पूछा–पानी कौन चलायेगा? दौड़े-दौड़े गये, दोनों को भगा आये। अब जाकर मना क्यों नहीं लाते?
‘तुम्हीं ने इन सबों को बिगाड़ रखा है।’
‘उस तरह मारने से और भी निर्लज्ज हो जायँगी।’
‘दो जून खाना बन्द कर दो, आप ठीक हो जायँ।’
‘मैं उनका बाप हूँ, कसाई नहीं हूँ।’
पाँव में एक बार ठोकर लग जाने के बाद किसी कारण से बार-बार ठोकर लगती है और कभी-कभी अँगूठा पक जाता है और महीनों कष्ट देता है। पिता और पुत्र के सद्भाव को आज उसी तरह की चोट लग गयी थी और उस पर यह तीसरी चोट पड़ी।
गोबर ने घर जाकर झुनिया को खेत में पानी देने के लिए साथ लिया। झुनिया बच्चे को लेकर खेत में गयी। धनिया और उसकी दोनों बेटियाँ ताकती रहीं। माँ को भी गोबर की यह उद्दंडता बुरी लगती थी। रूपा को मारता तो वह बुरा न मानती, मगर जवान लड़की को मारना, यह उसके लिए असह्य था।
आज ही रात को गोबर ने लखनऊ लौट जाने का निश्चय कर लिया। यहाँ अब वह नहीं रह सकता। जब घर में उसकी कोई पूछ नहीं है, तो वह क्यों रहे। वह लेन-देन के मामले में बोल नहीं सकता। लड़कियों को जरा मार दिया तो लोग ऐसे जामे के बाहर हो गये, मानो वह बाहर का आदमी है। तो इस सराय में वह न रहेगा।
दोनों भोजन करके बाहर आये थे कि नोखेराम के प्यादे ने आकर कहा–चलो, कारिन्दा साहब ने बुलाया है।
होरी ने गर्व से कहा–रात को क्यों बुलाते हैं, मैं तो बाकी दे चुका हूँ।
प्यादा बोला–मुझे तो तुम्हें बुलाने का हुक्म मिला है। जो कुछ अरज करना हो, वहीं चलकर करना।
होरी की इच्छा न थी, मगर जाना पड़ा; गोबर विरक्त-सा बैठा रहा। आध घंटे में होरी लौटा और चिलम भर कर पीने लगा। अब गोबर से न रहा गया। पूछा–किस मतलब से बुलाया था?
होरी ने भर्राई हुई आवाज में कहा–मैंने पाई-पाई लगान चुका दिया। वह कहते हैं, तुम्हारे ऊपर दो साल की बाकी है। अभी उस दिन मैंने ऊख बेची, पचीस रुपए वहीं उनको दे दिये, और आज वह दो साल का बाकी निकालते हैं। मैंने कह दिया, मैं एक धेला न दूँगा।
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