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उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास)

गोदान’ (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :758
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8458
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।


उसी वक्त हार्न की आवाज आयी और एक क्षण में मिस्टर मेहता आकर खड़े हो गये। गोरा चिट्टा रंग, स्वास्थ्य की लालिमा गालों पर चमकती हुई, नीची अचकन, चूड़ीदार पाजामा, सुनहली ऐनक। सौम्यता के देवता-से लगते थे।

खन्ना ने उठकर हाथ मिलाया–आइए मिस्टर मेहता, आप ही का जिक्र हो रहा था। मेहता ने दोनों सज्जनों से हाथ मिलाकर कहा–बड़ी अच्छी साइत में घर से चला था कि आप दोनों साहबों से एक ही जगह भेंट हो गयी। आपने शायद पत्रों में देखा होगा, यहाँ महिलाओं के लिए एक व्यायामशाला का आयोजन हो रहा है। मिस मालती उस कमेटी की सभानेत्री हैं। अनुमान किया गया है कि शाला में दो लाख रुपए लगेंगे। नगर में उसकी कितनी जरूरत है, यह आप लोग मुझसे ज्यादा जानते हैं। मैं चाहता हूँ आप दोनों साहबों का नाम सबसे ऊपर हो। मिस मालती खुद आनेवाली थीं; पर आज उनके फादर की तबीयत अच्छी नहीं है, इसलिए न आ सकीं। उन्होंने चन्दे की सूची राय साहब के हाथ में रख दी। पहला नाम राजा सूर्यप्रतापसिंह का था जिसके सामने पाँच हजार रुपए की रकम थी। उसके बाद कुँवर दिग्विजयसिंह के तीन हजार रुपए थे। इसके बाद और कई रकमें इतनी या इससे कुछ कम थी। मालती ने पाँच सौ रुपये दिये थे और डाक्टर मेहता ने एक हजार रुपए। राय साहब ने अप्रतिभ होकर कहा–कोई चालीस हजार तो आप लोगों ने फटकार लिये। मेहता ने गर्व से कहा–यह सब आप लोगों की दया है। और यह केवल तीन घंटों का परिश्रम है। राजा सूर्यप्रतापसिंह ने शायद ही किसी सार्वजनिक कार्य में भाग लिया हो; पर आज तो उन्होंने बे-कहे-सुने चेक लिख दिया! देश में जागृति है। जनता किसी भी शुभ काम में सहयोग देने को तैयार है। केवल उसे विश्वास होना चाहिए कि उसके दान का सद्व्यय होगा। आपसे तो मुझे बड़ी आशा है, मिस्टर खन्ना!

खन्ना ने उपेक्षा-भाव से कहा–मैं ऐसे फजूल के कामों में नहीं पड़ता। न जाने आप लोग पच्छिम की गुलामी में कहाँ तक जायँगे। यों ही महिलाओं को घर से अरुचि हो रही है। व्यायाम की धुन सवार हो गयी, तो वह कहीं की न रहेंगी। जो औरत घर का काम करती है, उसके लिए किसी व्यायाम की जरूरत नहीं। और जो घर का कोई काम नहीं करती और केवल भोग-विलास में रत है, उसके व्यायाम के लिए चन्दा देना मैं अधर्म समझता हूँ।

मेहता ज़रा भी निरुत्साह न हुए–ऐसी दशा में मैं आपसे कुछ माँगूँगा भी नहीं। जिस आयोजन में हमें विश्वास न हो उसमें किसी तरह की मदद देना वास्तव में अधर्म है। आप तो मिस्टर खन्ना से सहमत नहीं हैं रायसाहब!

राय साहब गहरी चिन्ता में डूबे हुए थे। सूर्यप्रताप के पाँच हजार उन्हें हतोत्साह किये डालते थे। चौंककर बोले–आपने मुझसे कुछ कहा?

‘मैंने कहा, आप तो इस आयोजन में सहयोग देना अधर्म नहीं समझते?’

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