उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
7 पाठकों को प्रिय 54 पाठक हैं |
‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
मिस मालती ने दया करना न सीखा था।
पत्र नहीं चलता, तो बन्द कीजिए। अपना पत्र चलाने के लिए आपको विदेशी वस्तुओं के प्रचार का कोई अधिकार नहीं। अगर आप मजबूर हैं, तो सिद्धान्त का ढोंग छोड़िए। मैं तो सिद्धान्तवादी पत्रों को देखकर जल उठती हूँ। जी चाहता है, दियासलाई दिखा दूँ। जो व्यक्ति कर्म और वचन में सामंजस्य नहीं रख सकता, वह और चाहे जो कुछ हो सिद्धान्तवादी नहीं है।’
मेहता खिल उठे। थोड़ी देर पहले उन्होंने खुद इसी विचार का प्रतिपादन किया था। उन्हें मालूम हुआ कि इस रमणी में विचार की शक्ति भी है, केवल तितली नहीं। संकोच जाता रहा।’
यही बात अभी मैं कह रहा था। विचार और व्यवहार में सामंजस्य का न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।’
मिस मालती प्रसन्न मुख से बोली–तो इस विषय में आप और मैं एक हैं, और मैं भी फिलासफर होने का दावा कर सकती हूँ।
खन्ना की जीभ में खुजली हो रही थी। बोले–आपका एक-एक अंग फिलासफी में डूबा हुआ है।
मालती ने उनकी लगाम खींची–अच्छा, आपको भी फिलासफी में दखल है। मैं तो समझती थी, आप बहुत पहले अपनी फिलासफी को गंगा में डुबो बैठे। नहीं, आप इतने बैंकों और कम्पनियों के डाइरेक्टर न होते।
राय साहब ने खन्ना को सँभाला–तो क्या आप समझती हैं कि फिलासफरों को हमेशा फाकेमस्त रहना चाहिए।
‘जी हाँ। फिलासफर अगर मोह पर विजय न पा सके, तो फिलासफर कैसा?’
‘इस लिहाज से तो शायद मिस्टर मेहता भी फिलासफर न ठहरें!’
मेहता ने जैसे आस्तीन चढ़ाकर कहा–मैंने तो कभी यह दावा नहीं किया राय साहब! मैं तो इतना ही जानता हूँ कि जिन औजारों से लोहार काम करता है, उन्हीं औजारों से सोनार नहीं करता। क्या आप चाहते हैं, आम भी उसी दशा में फलें-फूलें जिसमें बबूल या ताड़? मेरे लिए धन केवल उन सुविधाओं का नाम है जिनमें मैं अपना जीवन सार्थक कर सकूँ। धन मेरे लिए बढ़ने और फलने-फूलनेवाली चीज नहीं, केवल साधन है। मुझे धन की बिल्कुल इच्छा नहीं, आप वह साधन जुटा दें, जिसमें मैं अपने जीवन का उपयोग कर सकूँ।
ओंकारनाथ समिष्टवादी थे। व्यक्ति की इस प्रधानता को कैसे स्वीकार करते?
|