उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
‘इसी तरह हर एक मजदूर कह सकता है कि उसे काम करने की सुविधाओं के लिए एक हजार महीने की जरूरत है।’
‘अगर आप समझते हैं कि उस मजदूर के बगैर आपका काम नहीं चल सकता, तो आपको वह सुविधाएँ देनी पड़ेंगी। अगर वही काम दूसरा मजदूर थोड़ी-सी मजदूरी में कर दे, तो कोई वजह नहीं कि आप पहले मजदूर की खुशामद करें।’
‘अगर मजदूरों के हाथ में अधिकार होता, तो मजदूरों के लिए स्त्री और शराब भी उतनी ही जरूरी सुविधा हो जाती जितनी फिलासफरों के लिए।’
‘तो आप विश्वास मानिए, मैं उनसे ईर्ष्या न करता।’
‘जब आपका जीवन सार्थक करने के लिए स्त्री इतनी आवश्यक है, तो आप शादी क्यों नहीं कर लेते?’
मेहता ने निस्संकोच भाव से कहा–इसीलिए कि मैं समझता हूँ, मुक्त भोग आत्मा के विकास में बाधक नहीं होता। विवाह तो आत्मा को और जीवन को पिंजरे में बन्द कर देता है।
खन्ना ने इसका समर्थन किया–बन्धन और निग्रह पुरानी थ्योरियाँ हैं। नयी थ्योरी है मुक्त भोग।
मालती ने चोटी पकड़ी–तो अब मिसेज खन्ना को तलाक के लिए तैयार रहना चाहिए।
‘तलाक का बिल पास तो हो।’
‘शायद उसका पहला उपयोग आप ही करेंगे?’
कामिनी ने मालती की ओर विष-भरी आँखों से देखा और मुँह सिकोड़ लिया, मानो कह रही है–खन्ना तुम्हें मुबारक रहें, मुझे परवा नहीं।
मालती ने मेहता की तरफ देखकर कहा–इस विषय में आपके क्या विचार हैं मिस्टर मेहता?
मेहता गम्भीर हो गये। वह किसी प्रश्न पर अपना मत प्रकट करते थे, तो जैसे अपनी सारी आत्मा उसमें डाल देते थे।
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