कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
गगन पथ का चिरगामी पथिक लपका हुआ विश्राम की ओर चला जाता था, जहाँ संध्या ने सुनहरा फर्श सजाया था और उज्जवल पुष्पों की सेज बिछा रखी थी। उसी समय करुणा को एक आदमी लाठी टेकते आता दिखायी दिया, मानो किसी जीर्ण मनुष्य की वेदना ध्वनि हो। पग-पग पर रुक कर खाँसने लगता था। उसका सिर झुका हुआ था, करुणा उसका चेहरा न देख सकती थी; लेकिन चाल-ढाल में कोई बूढ़ा आदमी मालूम होता था; पर एक क्षण में जब वह समीप आ गया, तो करुणा उसे पहचान गयी। वह उसका प्यारा पति ही था; किन्तु शोक! उसकी सूरत कितनी बदल गयी थी। वह जवानी, वह तेज, वह चपलता, वह सुगठन सब प्रस्थान कर चुका था। केवल हड्डियों का एक ढाँचा रह गया था। न कोई संगी न साथी, न यार, न दोस्त! करुणा उसे पहचानते ही बाहर निकल आयी; पर आलिंगन की कामना हृदय में दबा कर रह गयी। सारे मनसूबे धूल में मिल गये। सारा मनोल्लास आँसुओं के प्रवाह में बह गया, विलीन हो गया।
आदित्य ने घर में कदम रखते ही मुस्करा कर करुणा को देखा। पर उस मुस्कान में वेदना का एक संसार भरा हुआ था। करुणा ऐसी शिथिल हो गयी, मानों हृदय का स्पन्दन रुक गया हो। वह फटी हुई आँखों से स्वामी की ओर टकटकी बाँधे खड़ी थी, मानों उसे अपनी आँखों पर अब भी विश्वास न आता हो। स्वागत या दुःख का एक शब्द भी उसके मुँह से न निकला। बालक भी उसकी गोद में बैठा हुआ साहसी आँखों से इस कंकाल को देख रहा था और माता की गोद में चिपटा जाता था!
आखिर उसने कातर स्वर में कहा–यह तुम्हारी क्या दशा है? बिलकुल पहचाने नहीं जाते।
आदित्य ने उसकी चिंता को शांत करने के लिए मुस्कराने की चेष्टा करके कहा–कुछ नहीं, ज़रा दुबला हो गया हूँ। तुम्हारे हाथों का भोजन पाकर फिर स्वस्थ हो जाऊँगा।
करुणा–छी! सूख कर काँटा हो गये। क्या वहाँ भरपेट भोजन भी नहीं मिलता! तुम तो कहते थे, राजनैतिक आदमियों के साथ बड़ा अच्छा व्यवहार किया जाता है; और वह तुम्हारे साथी क्या हो गये, जो तुम्हें आठों पहर घेरे रहते थे और तुम्हारे पसीने की जगह खून बहाने को तैयार रहते थे?
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