कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
आदित्य की त्योरियों पर बल पड़ गये। बोले–यह बड़ा ही कटु अनुभव है करुणा! मुझे न मालूम था कि मेरे क़ैद होते ही लोग मेरी ओर से यों आँखें फेर लेंगे, कोई बात भी न पूछेगा। राष्ट्र के नाम पर मिटाने वालों का यही पुरस्कार है, यह मुझे न मालूम था। जनता अपने सेवकों को बहुत जल्द भूल जाती है, यह तो मैं जानता था; लेकिन अपने सहयोगी और सहायक इतने बेवफा होते हैं, इसका मुझे यह पहला ही अनुभव हुआ। लेकिन मुझे किसी से शिकायत नहीं। सेवा स्वयं अपना पुरस्कार है। मेरी भूल थी कि मैं इसके लिए यश और नाम चाहता था।
करुणा–तो क्या वहाँ भोजन भी न मिलता था?
आदित्य–यह न पूछो करुणा, बड़ी करुण कथा है। बस, यही गनीमत समझो कि जीता लौट आया। तुम्हारे दर्शन बदे थे, नहीं कष्ट तो ऐसे-ऐसे उठाये कि अब तक मुझे प्रस्थान कर जाना चाहिए था। मैं ज़रा लेटूँगा। खड़ा नहीं रहा जाता। दिन-भर में इतनी दूर आया हूँ।
करुणा–चलकर कुछ खो लो; तो आराम से लेटो। (बालक को गोद में उठा कर) बाबू जी हैं बेटा, तुम्हारे बाबू जी। इनकी गोद में जाओ, तुम्हें प्यार करेंगे।
आदित्य ने आँसू-भरी आँखों से बालक को देखा, और उनका एक-एक रोम उनका तिरस्कार करने लगा। अपनी जीर्ण दशा पर उन्हें कभी इतना दुःख न हुआ था। ईश्वर की असीम दया से उनकी दशा सँभल जाती, तो फिर कभी राष्ट्रीय आन्दोलन के समीप न जाते। इस फूल-से बच्चे को यों संसार में ला कर दरिद्रता की आग में झोंकने का इन्हें क्या अधिकार था? वह अब लक्ष्मी की उपासना करेंगे, और अपना क्षुद्र जीवन बच्चे के लालन-पालन के लिए अर्पित करेंगे। उन्हें इस समय ऐसा ज्ञात हुआ कि बालक उन्हें उपेक्षा की दृष्टि से देख रहा है, मानों कह रहा है– ‘मेरे साथ आपने कौन-सा कर्तव्य पालन किया?’ उनकी सारी कामना, सारा प्यार बालक को हृदय से लगा लेने के लिए अधीर हो उठा; पर हाथ न फैला सके। हाथों में शक्ति ही न थी।
करुणा बालक को लिए हुए उठी, और थाली में कुछ भोजन निकाल कर लायी। आदित्य ने क्षुधा-पूर्ण नेत्रों से थाली की ओर देखा, मानों आज बहुत दिनों के बाद कोई खाने की चीज़ सामने आयी है। जानता था कि कई दिनों के उपवास के बाद और आरोग्य की इस नयी-गुज़री दशा में उसे ज़बान को काबू में रखना चाहिए; पर सब्र न कर सका, थाली पर टूट पड़ा और देखते-देखते थाली साफ कर दी। करुणा सशंक हो गयी। उसने दोबारा किसी चीज़ के लिए न पूछा, थाली उठा कर चली गयी, पर उसका दिल कह रहा था– इतना तो यह कभी न खाते थे।
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