लोगों की राय

कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

221 पाठक हैं

उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


मैं—तुम भी तो वह नहीं रहीं। मगर आख़िर यह भेद क्या है, क्या तुम स्वर्ग से लौट आयीं?

लीला—मैं तो नैनीताल में अपने मामा के यहाँ थी।

मैं—और वह चिट्ठी मुझे किसने लिखी थी और तार किसने दिया था?

लीला—मैंने ही।

मैं—क्यों? तुमने यह मुझे धोखा क्यों दिया? शायद तुम अन्दाजा नहीं कर सकतीं कि मैंने तुम्हारे शोक में कितनी पीड़ा सही है।

मुझे उस वक़्त एक अनोखा गुस्सा आया—यह फिर मेरे सामने क्यों आ गयी! मर गयी थी तो मरी ही रहती!

लीला—इसमें एक गुर था, मगर यह बात फिर होती रहेगी। आओ इस वक़्त तुम्हें अपनी एक लेडी फ्रेण्ड से इण्ट्रोड्यूस कराऊँ, वह तुमसे मिलने की बहुत इच्छुक है।

मैंने अचरज से पूछा—मुझसे मिलने की! मगर लीलावती ने इसका कुछ जवाब न दिया और मेरा हाथ पकड़कर गाड़ी के सामने ले गयी। उसमें एक युवती हिन्दुस्तानी कपड़े पहने बैठी हुई थी। मुझे देखते ही उठ खड़ी हुई और हाथ बढ़ा दिया। मैंने लीला की तरफ़ सवाल करती हुई आँखों से देखा।

लीला—क्या तुमने नहीं पहचाना?

मैं—मुझे अफ़सोस है कि मैंने आपको पहले कभी नहीं देखा और अगर देखा भी हो तो घूँघट की आड़ से क्योंकर पहचान सकता हूँ।

लीला—यह तुम्हारी बीवी कुमुदिनी है!

मैंने आश्चर्य के स्वर में कहा—कुमुदिनी, यहाँ?

लीला—कुमुदिनी मुँह खोल दो और अपने प्यारे पति का स्वागत करो।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book