कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
कुमुदिनी ने काँपते हुए हाथों से ज़रा-सा घूंघट उठाया। लीला ने सारा मुँह खोल दिया और ऐसा मालूम हुआ कि जैसे बादल से चाँद निकल आया। मुझे ख्याल आया, मैंने यह चेहरा कहीं देखा है। कहां? अहा, उसकी नाक पर भी तो वही तिल है उंगली में वही अंगूठी भी है।
लीला—क्या सोचते हो, अब पहचाना?
मैं—मेरी कुछ अक्ल काम नहीं करती। हूबहू यही हुलिया मेरे एक प्यारे दोस्त मेहर सिंह का है।
लीला—(मुस्कराकर) तुम तो हमेशा निगाह के तेज़ बनते थे, इतना भी नहीं पहचान सकते!
मैं खुशी से फूल उठा—कुमुदिनी मेहरसिंह के भेस में! मैंने उसी वक़्त उसे गले से लगा लिया और ख़ूब दिल खोलकर प्यार किया। इन कुछ क्षणों में मुझे जो खुशी हासिल हुई उसके मुक़ाबिले में ज़िन्दगी भर की खुशियाँ, हेच हैं। हम दोनों आलिंगन-पाश में बंधे हुए थे। कुमुदिनी प्यारी कुमुदिनी के मुँह से आवाज़ न निकलती थी। हाँ, आँखों से आँसू जारी थे।
मिस लीला बाहर खड़ी कोमल आँखों से यह दृश्य देख रही थीं। मैंने उसके हाथों को चूमकर कहा—प्यारी लीला, तुम सच्ची देवी हो, जब तक जियेंगे तुम्हारे कृतज्ञ रहेंगे।
लीला के चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कराहट दिखायी दी। बोली—अब तो शायद तुम्हें मेरे शोक का काफ़ी पुरस्कार मिल गया।
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