कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
फूलमती को ऐसा प्रतीत हुआ कि अब प्रलय आने में बहुत देर नहीं है। जब पढ़े-लिखे आदमियों के मन में ऐसे अधार्मिक भाव आने लगे, तो फिर धर्म की भगवान् ही रक्षा करें। अपना-सा मुँह लेकर चली गयी।
दो महीने गुज़र गये हैं। रात का समय है। चारों भाई दिन के काम से छुट्टी पा कर कमरे में बैठे गप-शप कर रहे हैं। बड़ी बहू भी षड्यंत्र में शरीक हैं। कुमुद के विवाह का प्रश्न छिड़ा हुआ है।
कामतानाथ ने मसनद पर टेक लगाते हुए कहा–दादा की बात दादा के साथ गयी। मुरारी पंडित विद्व भी हैं और कुलीन भी होंगे। लेकिन जो आदमी अपनी विद्या और कुलीनता को रुपयों पर बेचे, वह नीच है। ऐसे नीच आदमी के लड़के से हम कुमुद का विवाह सेंत में भी न करेंगे, पाँच हज़ार तो दूर की बात है। उसे बताओ धता और किसी दूसरे वर की तलाश करो। हमारे पास कुल बीस हज़ार ही तो हैं। एक-एक के हिस्से में पाँच-पाँच हज़ार आते हैं। पाँच हज़ार दहेज़ में दे दें, और पाँच हज़ार नेग-न्योछावर, बाजे-गाजे में उड़ा दें, तो फिर हमारी बधिया ही बैठ जायगी।
उमानाथ बोले–मुझे अपना औषधालय खोलने के लिए कम से कम पाँच हज़ार की जरूरत है। मैं अपने हिस्से में से एक पाई भी नहीं दे सकता। फिर खुलते ही आमदनी तो होगी नहीं। कम से कम साल भर घर से खाना पड़ेगा।
दयानाथ एक समाचार-पत्र देख रहे थे। आँखों से ऐनक उतारते हुए बोले–मेरा विचार भी एक पत्र निकालने का है। प्रेस और पत्र में कम से कम दस हज़ार का कैपिटल चाहिए। पाँच हज़ार मेरे रहेंगे तो कोई न कोई साझेदार भी मिल जायगा। पत्रों में लेख लिख कर मेरा निर्वाह नहीं हो सकता।
कामतानाथ ने सिर हिलाते हुए कहा–अजी, राम भजो, सेंत में कोई लेख छपता नहीं, रुपये कौन देता है।
दयानाथ ने प्रतिवाद किया–नहीं, यह बात तो नहीं है। मैं तो कहीं भी बिना पेशगी पुरस्कार लिये नहीं लिखता।
कामता ने जैसे अपने शब्द वापस लिये–तुम्हारी बात मैं नहीं कहता भाई। तुम तो थोड़ा-बहुत मार लेते हो; लेकिन सब को तो नहीं मिलता।
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