लोगों की राय

कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

221 पाठक हैं

उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


सावन की झड़ी लगी हुई थी। मलेरिया फैल रहा था। आकाश में मटियाले बादल थे। ज़मीन पर मटियाला पानी। आर्द्र वायु शीत ज्वर और श्वास का वितरण करती फिरती थी। घर की महरी बीमार पड़ गयी। फूलमती ने घर के सारे बर्तन माँजे, पानी में भीग-भीग कर सारा काम किया। फिर आग जलायी, और चूल्हे पर पतीलियाँ चढ़ा दीं। लड़कों को समय पर भोजन तो मिलना ही चाहिए। सहसा उसे याद आया, कामतानाथ नल का पानी नहीं पीते। उसी वर्षा में गंगा जल लाने चली।

कामतानाथ ने पलँग पर लेटे-लेटे कहा–रहने दो अम्माँ, मैं पानी भर लाऊँगा, आज महरी खूब बैठ रही।
फूलमती ने मटियाले आकाश की ओर देख कर कहा–तुम भींग जाओगे बेटा, सर्दी हो जायगी।

कामतानाथ बोले–तुम भी तो भींग रही हो। कहीं बीमार न पड़ जाओ।

फूलमती निर्मम भाव से बोली–मैं बीमार न पडूँगी। मुझे भगवान् ने अमर कर दिया है।

उमानाथ भी वहीं बैठा हुआ था। उसके औषधालय में कुछ आमदनी न होती थी; इसलिए बहुत चिन्तित रहता था। भाई भवाज की मुँहदेखी करता रहता था। बोला–जाने भी दो भैया! बहुत दिनों बहुओं पर राज कर चुकी है, उसका प्रायश्चित्त तो करने दो।

गंगा बढ़ी हुई थी, जैसे समुद्र हो। क्षितिज के सामने के कूल से मिला हुआ था। किनारों के वृक्षों की केवल फुनगियाँ पानी के ऊपर रह गई थीं। घाट ऊपर तक पानी में डूब गये थे। फूलमती कलसा लिये नीचे उतरी, पानी भरा और ऊपर जा रही थी कि पाँव फिसला। सँभल न सकी। पानी में गिर पड़ी। पल भर हाथ पाँव चलाये, फिर लहरें उसे नीचे खींच ले गयीं। किनारे पर दो चार पंडे चिल्लाए–‘अरे दौड़ो, बुढ़िया डूबी जाती है।’ दो चार आदमी दौड़े भी; लेकिन फूलमती लहरों में समा गयी थी, उन बल खाती हुई लहरों में, जिन्हें देख कर ही हृदय काँप उठता था।

एक ने पूछा–यह कौन बुढ़िया थी?

‘अरे, वही पंडित अयोध्यानाथ की विधवा है।’

‘अयोध्यानाथ तो बड़े आदमी थे?’

‘हाँ थे तो; पर इसके भाग्य में ठोकर खाना लिखा था।’

‘उनके तो कई लड़के बड़े-बड़े हैं और सब कमाते हैं?’

‘हाँ, सब हैं भाई; मगर भाग्य भी तो कोई वस्तु है!’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book