कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
एक दिन सन्यामेर समय होस्टगल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मन्द गति से झूमता पतन की ओर चला जा रहा था, मानो कोई आत्माि स्वकर्ग से निकल कर विरक्तद मन से नये संस्कासर ग्रहण करने जा रही हो। बालकों की एक पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिये उनका स्वारगत करने को दौड़ी आ रही थी। किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग के साथ ही आकाश में उड़ रहे थे, जहाँ सब कुछ समतल है, न मोटरकारें है, न ट्राम, न गाड़ियाँ।
सहसा भाई साहब से मेरी मुठभेड़ हो गयी, जो शायद बाज़ार से लौट रहे थे। उन्होसने वहीं मेरा हाथ पकड़ लिया और उग्रभाव से बोले–इन बाज़ारी लौंडो के साथ धेले के कनकौए के लिए दौड़ते तुम्हें शर्म नहीं आती? तुम्हेंड इसका भी कुछ लिहाज नहीं कि अब नीची ज़मात में नहीं हो बल्कि आठवीं जमात में आ गये हो और मुझसे केवल एक दरजा नीचे हो। आखिर आदमी को कुछ तो अपनी पोज़ीशन का ख़याल करना चाहिए। एक ज़माना था कि लोग आठवाँ दरजा पास करके नायब तहसीदार हो जाते थे। मैं कितने ही मिडलचियों को जानता हूँ, जो आज अव्वजल दरजे के डिप्टी मजिस्ट्रे ट या सुपरिटेंडेंट हैं। कितने ही आठवीं जमाअत वाले हमारे लीडर और समाचार-पत्रो के सम्पा दक है। बडें-बडें विद्धान् उनकी मातहती में काम करते है और तुम उसी आठवें दरजे में आकर बाज़ारी लौंडों के साथ कनकौए के लिए दौड़ रहे हो। मुझे तुम्हाआरी इस कमअकली पर दुःख होता है। तुम ज़हीन हो, इसमें शक नहीं, लेकिन वह ज़ेहन किस काम का, जो हमारे आत्मी-गौरव की हत्यान कर डाले। तुम अपने दिल में समझते होगे, मैं भाई साहब से महज़ एक दरजा नीचे हूँ, और अब उन्हें मुझको कुछ कहने का हक नहीं है, लेकिन यह तुम्हासरी ग़लती है। मैं तुमसे पाँच साल बड़ा हूँ और चाहे आज तुम मेरी ही ज़मात में आ जाओ–और परीक्षकों का यही हाल है, तो निस्सान्देह अगले साल तुम मेरे समकक्ष हो जाओगे, और शायद एक साल बाद तुम मुझसे आगे भी निकल जाओ–लेकिन मुझमें और तुमसे जो पाँच साल का अन्तदर है, उसे तुम क्याल, खुदा भी नहीं मिटा सकता। मैं तुमसे पाँच साल बड़ा हूँ और हमेशा रहूँगा। मुझे दुनिया का और ज़िन्द गी का जो तजरबा है, तुम उसकी बराबरी नहीं कर सकते, चाहे तुम एम० ए० और डी० लिट्० और डी० फिल्० ही क्योह न हो जाओ।
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