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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


समझ किताबें पढ़ने से नहीं आती है। हमारी अम्माँज ने कोई दरजा नहीं पास किया, और दादा भी शायद पाँचवीं ज़मात के आगे नहीं गये;  लेकिन हम दोनों चाहे सारी दुनिया की विधा पढ़ ले, अम्माँी और दादा को हमें समझाने और सुधारने का अधिकार हमेशा रहेगा। केवल इसलिए नहीं कि वे हमारे जन्मऔदाता हैं; बल्कि  इसलिए कि उन्हें  दुनिया का हमसे ज्या दा तजरबा है और रहेगा। अमेरिका में किस तरह की राज्यए-व्यहवस्था  है और आठवें हेनरी ने कितने ब्याह किये और आकाश में कितने नक्षत्र हैं, यह बाते चाहे उन्हेे न मालूम हों; लेकिन हजारों ऐसी बातें हैं, जिनका ज्ञान उन्हें  हमसे और तुमसे ज्यासदा है। दैव न करे, आज मैं बीमार हो आऊँ, तो तुम्हाेरे हाथ-पाँव फूल जायँगें। दादा को तार देने के सिवा तुम्हेत और कुछ न सूझेगा; लेकिन तुम्हाहरी जगह पर दादा हों, तो किसी को तार न दें, न घबरायें, न बदहवास हों। पहले खुद मरज़ पहचान कर इलाज करेंगे; उसमें सफल न हुए, तो किसी डाक्टँर को बुलायेगें। बीमारी तो खैर बड़ी चीज़ है। हम-तुम तो इतना भी नहीं जानते कि महीने-भर का खर्च महीना-भर कैसे चले। जो कुछ दादा भेजते हैं, उसे हम बीस-बाईस तक र्खच कर डालते हैं और पैसे-पैसे को मुहताज हो जाते है। नाश्ता  बन्द हो जाता है, धोबी और नाई से मुँह चुराने लगते हैं, लेकिन जितना आज हम और तुम खर्च कर रहे है, उसके आधे में दादा ने अपनी उम्र का बड़ा भाग इज्ज़ त और नेकनामी के साथ निभाया है और एक कुटुम्बब का पालन किया है, जिसमें सब मिलाकर नौ आदमी थे। अपने हेड मास्टसर साहब ही को देखो। एम० ए० हैं कि नहीं; और यहाँ के एम० ए० नही, आक्सटफोर्ड के। एक हज़ार रुपये पाते है, लेकिन उनके घर इन्तज़ाम कौन करता है? उनकी बूढ़ी माँ। हेड मास्टफर साहब की डिग्री यहाँ बेकार हो गयी। पहले खुद घर का इन्तज़ाम करते थे। खर्च पूरा न पड़ता था। कर्ज़दार रहते थे। जब से उनकी माताजी ने प्रबन्ध अपने हाथ में ले लिया है; जैसे घर में लक्ष्मी  आ गयी हैं। तो भाई जान, यह ग़रूर दिल से निकाल डालो कि तुम मेरे समीप आ गये हो और अब स्वघतन्त्र हो। मेरे देखते तुम बेराह न चलने पाओगे। अगर तुम यों न मानोगे, तो मैं (थप्प ड दिखा कर) इसका प्रयोग भी कर सकता हूँ। मैं जानता हूँ, तुम्हेंअ मेरी बातें जहर लग रही हैं।

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