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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


मेरे दिल का बोझ उतर गया। हम सुनीसुनायी बातों से दूसरों के सम्बन्ध में कैसी मिथ्या धारणा कर लिया करते हैं, इसका बड़ा शुभ अनुभव हुआ। मैंने आकर गोपा को बधाई दी। यह निश्चय हुआ कि गरमियों में विवाह कर दिया जाय।

ये चार महीने गोपा ने विवाह की तैयारियों में काटे। मैं महीने में एक बार अवश्य  उससे मिल आता था; पर हर बार खिन्नं होकर लौटता। गोपा ने अपनी कुल मर्यादा का न जाने कितना महान् आदर्श अपने सामने रख लिया था। पगली इस भ्रम में पड़ी हुई ‍थी कि उसका उत्सा्ह नगर में अपनी यादगार छोड़ता जायगा। यह न जानती थी कि यहाँ ऐसे तमाशे रोज होते हैं और आये दिन भुला दिये जाते हैं। शायद वह संसार से यह श्रेय लेना चाहती थी कि इस गयी बीती दशा में भी लुटा हुआ हाथी नौ लाख का है। पग-पग पर उसे देवनाथ की याद आती। वह होते तो यह काम यों न होता, यों होता, और तब रोती। मदारीलाल सज्ज न हैं, यह सत्य  है; लेकिन गोपा का अपनी कन्यार के प्रति भी कुछ धर्म है। कौन उसके दस पाँच लड़कियाँ बैठी हुई हैं। वह तो दिल खोलकर अरमान निकालेगी! सुन्नीन के लिए उसने जितने गहने और जोड़े बनवाए थे, उन्हेंो देखकर मुझे आश्चीर्य होता था। जब देखो कुछ-न-कुछ सी रही है, कभी सुनारों की दुकान पर बैठी हुई है, कभी मेहमानों के आदर-सत्कातर का आयोजन कर रही है, मुहल्लेन में ऐसा बिरला ही कोई सम्पान्ने मनुष्य‍ होगा, जिससे उसने कुछ कर्ज न लिया हो। वह इसे कर्ज़ समझती थी; पर देनेवाले दान समझकर देते थे। सारा मुहल्लान उसका सहायक था। सुन्नी  अब मुहल्लेो की लड़की थी। गोपा की इज्ज़ त सबकी इज्ज़कत है और गोपा के लिए तो नींद और आराम हराम था। दर्द से सिर फटा जा रहा है, आधी रात हो गयी; मगर वह बैठी कुछ-न-कुछ सी रही है, या ‘इस कोठी का धान उस कोठी’ कर रही है। कितनी वात्स ल्यन से भरी अकांक्षा थी कि जो देखने वालों में श्रद्धा उत्प न्नै कर देती थी।

अकेली औरत और वह भी आधी जान की। क्‍या-क्याध करे। जो काम दूसरों पर छोड़ देती है, उसी में कुछ न कुछ कसर रह जाती है, पर उसकी हिम्मोत है कि किसी तरह हार नहीं मानती।

पिछली बार उसकी दशा देखकर मुझसे रहा न गया। बोला–गोपा देवी, अगर मरना ही चाहती हो, तो विवाह हो जाने के बाद मरो। मुझे भय है कि तुम उसके पहले ही न चल दो।

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