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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


 

नशा

ईश्व री एक बड़े जमींदार का लड़का था और मैं ग़रीब क्लीर्क का, जिसके पास मेहनत-मजूरी के सिवा और कोई जायदाद न थी। हम दोनों में परस्प़र बहसें होती रहती थीं। मैं जमींदारी की बुराई करता, उन्हें  हिंसक पशु और खून चूसनेवाली जोंक और वृक्षों की चोटी पर फूलनेवाला बंझा कहता। वह जमींदारों का पक्ष लेता; पर स्व भावतः उसका पहलू कुछ कमज़ोर होता था; क्योंीकि उसके पास जमींदारों के अनुकूल कोई दलील न थी। यह कहता कि सभी मनुष्या बराबर नहीं होते; छोटे-बड़े हमेशा होते रहते हैं और होते रहेंगे, लचर दलील थी। किसी मानुषीय या नैतिक नियम से इस व्य वस्थां का औचित्यो सिद्ध करना कठिन था। मैं इस वाद-विवाद की गर्मा-गर्मी में अक्स्र तेज हो जाता और लगने वाली बात कह जाता; लेकिन ईश्वकरी हार कर भी मुस्कयराता रहता था। मैंने उसे कभी गर्म होते नहीं देखा। शायद इसका कारण यह था कि वह अपने पक्ष की कमज़ोरी समझता था। नौकरों से वह सीधे मुँह बात नहीं करता था। अमीरों में जो एक बेदर्दी और उद्दंडता होती है, इसमें उसे भी प्रचुर भाग मिला था। नौकर ने बिस्तकर लगाने में जरा भी देर की, दूध जरूरत से ज्याेदा गर्म या ठंडा हुआ, साइकिल अच्छीग तरह साफ़ नहीं हुई, तो वह आपे से बाहर हो जाता! सुस्ती् या बदतमीजी उसे जरा भी बरदाश्तच न थी; पर दोस्तोंु से और विशेषकर मुझसे उसका व्यदवहार सौहार्द और नम्रता से भरा हुआ होता था। शायद उसकी जगह मैं होता तो मुझमें भी वही कठोरताएँ पैदा हो जातीं, जो उसमें थीं; क्योंेकि मेरा लोक-प्रेम सिद्धान्तों पर नहीं, निजी दशाओं पर टिका हुआ था, लेकिन वह मेरी जगह हो कर भी शायद अमीर ही रहता, क्योंीकि वह प्रकृति से ही विलासी और ऐश्व र्य प्रिय था।

अब की दशहरे की छुट्टियों में मैंने निश्चपय किया कि घर न जाऊँगा। मेरे पास किराये के लिए रुपये न थे और न घरवालों को तकलीफ देना चाहता था। मैं जानता हूँ, वे मुझे जो कुछ देते हैं, वह उनकी हैसियत से बहुत ज्या दा है, उसके साथ ही परीक्षा का ख्यानल था। अभी बहुत-कुछ पढ़ना बाक़ी था और घर जाकर कौन पढ़ता है। बोर्डिंग हाउस में भूत की तरह अकेले पड़े रहने को भी जी न चाहता था। इसलिए जब ईश्वहरी ने मुझे अपने घर का नेवता दिया, तो मैं बिना आग्रह के राजी हो गया। ईश्वीरी के साथ परीक्षा की तैयारी खूब हो जायगी। वह अमीर होकर भी मेहनती और ज़हीन है।

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