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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


गाड़ी में तूफान आ गया। चारों ओर से मुझ पर बौछार पड़ने लगीं।

‘अगर इतने नाजुक-मिजाज हो, तो अव्वछल दर्जे में क्योंभ नहीं बैठे।’

‘कोई बड़ा आदमी होगा, तो अपने घर का होगा। मुझे इस तरह मारते, तो दिखा देता।’

‘क्याब कसूर किया था बेचारे ने! गाड़ी में साँस लेने की जगह नहीं, खिड़की पर ज़रा साँस लेने खड़ा हो गया तो उस पर इतना क्रोध! अमीर हो कर क्यान आदमी अपनी इन्सापनियत बिल्कुडल खो देता है?’

‘यह भी अँगरेजी राज है, जिसका आप बख़ान कर रहे थे।’

एक ग्रामीण बोला–दफ्तरन माँ घुस पावत नहीं, उस पै इत्ता मिजाज!

ईश्व्री ने अँगरेजी में कहा–What an idiot you are, Bir!

और मेरा नशा अब कुछ-कुछ उतरता हुआ मालूम होता था।

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