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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


दुलारी लड़ने को तैयार होकर आयी थी। बोली–तेरे हाथ में काहे को कभी रुपये आयेंगे और काहे को कड़े बनेंगे। जोड़-तोड़ रखने में मजा आता है न?

प्याारी ने हँस कर कहा–जोड-तोड़ रखती हूँ तो तेरे लिए कि मेरे कोई और बैठा हुआ है, कि मैं सबसे ज्या दा खा-पहन लेती हूँ। मेरा अनन्तत कब का टूटा पड़ा है।

दुलारी–तुम न खाओ-पहनो, जस तो पाती हो। यहाँ खाने-पहनने के सिवा और क्या  है? मैं तुम्हा रा हिसाब-किताब नहीं जानती, मेरे कड़े आज बनने को भेज दो।

प्याहरी ने सरल विनोद के भाव से पूछा–रुपये न हों, तो कहाँ से लाऊँ?

दुलारी ने उद्दंडता के साथ कहा–मुझे इससे कोई मतलब नहीं। मैं तो कड़े चाहती हूँ।

इसी तरह घर के सब आदमी अपने-अपने अवसर पर प्यामरी को दो-चार खोटी-खरी सुना जाते थे, और वह गरीब सबकी धौंस हँसकर सहती थी। स्वाीमिनी का यह धर्म है कि सबकी धौंस सुन ले और करे वहीं, जिसमें घर का कल्याीण हो! स्वासमित्वत के कवच पर धौंस, ताने, धमकी किसी का असर न होता। उसकी स्वाोमिनी की कल्पकना इन आघातों से और भी स्व स्थक होती थी। वह गृहस्थीन की संचालिका है। सभी अपने-अपने दुःख उसी के सामने रोते हैं, पर जो कुछ वह करती है, वही होता है। इतना उसे प्रसन्नप करने के लिए काफी था।

गाँव में प्यांरी की सराहना होती थी। अभी उम्र ही क्या  है, लेकिन सारे घर को सँभाले हुए है। चाहती तो सगाई करके चैन से रहती। इस घर के पीछे अपने को मिटाये देती है। कभी किसी से हँसती-बोलती भी नहीं, जैसे कायापलट हो गयी।

कई दिन बाद दुलारी के कड़े बन कर आ गये। प्याटरी खुद सुनार के घर दौड़-दौड़ गयी।

सन्यााद  हो गयी थी। दुलारी और मथुरा हाट से लौटे। प्या री ने नये कड़े दुलारी को दिये। दुलारी निहाल हो गई। चटपट कड़े पहले और दौड़ी हुई बरौठे में जाकर मथुरा को दिखाने लगी। प्याहरी बरौठे के द्वार पर छिपी खड़ी यह दृश्य  देखने लगी। उसकी आँखें सजल हो गयीं। दुलारी उससे कुल तीन ही साल तो छोटी है! पर दोनों में कितना अंतर है। उसकी आँखें मानो उस दृश्ये पर जम गयीं, दम्पपति का वह सरल आनन्द, उनका प्रेमालिंगन, उनकी मुग्धा मुद्रा–प्यायरी की टकटकी-सी बँध गयीं, यहाँ तक दीपक के धुँधले प्रकाश में वे दोनों उसकी नजरों से गायब हो गये और अपने ही अतीत जीवन की एक लीला आँखों के सामने बार-बार नये-नये रूप में आने लगी।

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