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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


उसने मुन्नीग के पास जाकर नाँद में झाँका। दुर्गन्ध‍ आ रही थी। ठीक! मालूम होता है, महीनों से पानी ही नहीं बदला गया। इस तरह तो गाय रह चुकी। अपना पेट भर लिया, छुट्टी हुई, और किसी से क्या  मतलब? हाँ, दूध सबको अच्छान लगता है। दादा द्वार पर बैठे चिलम पी रहे हैं, मगर इतना नहीं होता कि चार घड़ा पानी नाँद में डाल दें। मजूर रखा है, वह तीन कौड़ी का। खाने को डेढ़ सेर; काम करते नानी मरती है। आज आता है तो पूछती हूँ, नाँद में पानी क्यों  नहीं बदला। रहना हो, रहे या जाय। आदमी बहुत मिलेंगे। चारों ओर तो लोग मारे-मारे फिर रहे हैं।

आखिर उससे न रहा गया। घड़ा उठा कर पानी लाने चली।
शिवदास ने पुकारा–पानी क्या  होगा बहूँ? इसमें पानी भरा हुआ है।

प्याारी ने कहा–नाँद का पानी सड़ गया है। मुन्नी  भूसे में मुँह नहीं डालती। देखते नहीं हो, कोस भर पर खड़ी है।

शिवदास मार्मिक भाव से मुस्कीराये और आ कर बहू के हाथ से घड़ा ले लिया।

कई महीने बीत गये। प्याँरी के अधिकार में आते ही उस घर में जैसे बसन्त आ गया। भीतर-बाहर जहाँ देखिए, किसी निपुण प्रबंधक के हस्तन-कौशल, सुविचार और सुरुचि के चिन्हत दिखते थे। प्या‍री ने गृहयन्त्र की ऐसी चाभी कस दी थी कि सभी पुरजे ठीक-ठाक चलने लगे थे। भोजन पहले से अच्छा  मिलता है और समय पर मिलता है। दूध ज्याीदा होता है, घी ज्याचदा होता है, और काम ज्याीदा होता है। प्याथरी न खुद विश्राम लेती है, न दूसरों को विश्राम लेने देती है। घर में ऐसी बरकत आ गयी है कि जो चीज माँगो, घर ही में निकल आती है। आदमी से ले कर जानवर तक सभी स्वपस्थह दिखायी देते हैं। अब वह पहले की सी दशा नहीं है कि कोई चिथड़े लपेटे घूम रहा है, किसी को गहने की धुन सवार है। हाँ अगर कोई रुग्णो और चिन्तित तथा मलिन वेष में है, तो वह प्या री है; फिर भी सारा घर उससे जलता है। यहाँ तक कि बूढ़े शिवदास भी कभी-कभी उसकी बदगोई करते हैं। किसी को पहर रात रहे उठना अच्छाा नहीं लगता। मेहनत से सभी जी चुराते हैं। फिर भी यह सब मानते हैं कि प्याचरी न हो तो घर का काम न चले। और तो और, दोनों बहनों में भी अब उतना अपनापन नहीं।

प्रातःकाल का समय था। दुलारी ने हाथों के कड़े ला कर प्यामरी के सामने पटक दिये और भुन्नाैई हुई बोली–लेकर इसे भी भण्डालरे में बन्द कर दे।

प्यानरी ने कड़े उठा लिये और कोमल स्वइर से कहा–कह तो दिया, हाथ में रुपये आने दे, बनवा दूँगी। अभी ऐसा घिस नहीं गया है कि आज ही उतारकर फेंक दिया जाय।

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