लोगों की राय

कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

221 पाठक हैं

उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


इन्दरमल ने तैश में यह धृष्टतापूर्ण बातें कीं। मगर पिता के प्रेम को जगाने की कोशिश ने राजहठ के सोए हुए काले देव को जगा दिया। राजा साहब गुस्से से भरी हुई आँखों से देखकर बोले—हाँ, मैं भी यही समझता हूँ। तुम अपने उसूलों के पक्के हो तो मैं भी अपनी धुन का पूरा हूँ।

इन्दरमल ने मुस्कराकर राजा साहब को सलाम किया। उसका मुस्कराना घाव पर नमक हो गया। राजकुमार की आँखों में कुछ बूँदें शायद मरहम का काम देतीं।

राजकुमार ने इधर पीठ फेरी, उधर राजा साहब ने फिर अप्सराओं को बुलाया और फिर चित्त को प्रफुल्लित करने वाले गानों की आवाज़ें गूँजने लगीं। उनके संगीत-प्रेम की नदी कभी इतने ज़ोर-शोर से न उमड़ी थी, वाह-वाह की बाढ़ आई हुई थी, तालियों का शोर मचा हुआ था और सुर की किश्ती उस पुरशोर दरिया में हिंडोले की तरह झूल रही थी।

यहाँ तो नाच-गाने का हंगामा गरम था और रनिवास में रोने-पीटने का। रानी भानकुंवर दुर्गा की पूजा करके लौट रही थीं कि एक लौंडी ने आकर यह मर्मान्तक समाचार दिया। रानी ने आरती का थाल ज़मीन पर पटक दिया। वह एक हफ़्ते से दुर्गा का व्रत रखती थीं। मृगछाले पर सोती और दूध का आहार करती थीं। पाँव थर्राये, ज़मीन पर गिर पड़ीं। मुरझाया हुआ फूल हवा के झोंके को न सह सका। चेरियाँ सम्हल गयीं और रानी के चारों तरफ़ गोल बाँधकर छाती और सिर पीटने लगीं। कोहराम मच गया। आँखों में आँसू न सही, आँचलों से उनका पर्दा छिपा हुआ था, मगर गले में आवाज़ तो थी। इस वक़्त उसी की ज़रूरत थी। उसी की बुलन्दी और ग़रज में इस समय भाग्य की झलक छिपी हुई थी।

लौंडियाँ तो इस प्रकार स्वामिभक्ति का परिचय देने में व्यस्त थीं और भानकुँवर अपने खयालों में डूबी हुई थी। कुंवर से ऐसी बेअदबी क्योंकर हुई, यह ख़याल में नहीं आता। उसने कभी मेरी बातों का जवाब नहीं दिया, ज़रूर राजा की ज़्यादती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book