कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
मालिन ने चौंककर देखा और पहचान गई। रोकर बोली—बेटा, अब बताओ मेरा कहाँ ठिकाना लगे? तुमने मेरा बना बनाया घर उजाड़ दिया न उस दिन तुमसे बातें करती न मुझ पर यह बिपत पड़ती। बाई ने तुम्हें बैठे देख लिया, बातें भी सुनी, सुबह होते ही मुझे बुलाया और बरस पड़ीं—नाक कटवा लूँगी, मुँह में कालिख लगवा दूँगी, चुड़ैल, कुटनी, तू मेरी बात किसी ग़ैर आदमी से क्यों चलाये? तू दूसरों से मेरी चर्चा क्यों करे? वह क्या तेरा दामाद था, जो तू उससे मेरा दुखड़ा रोती थी? जो कुछ मुँह में आया बकती रही। मुझसे भी न सहा गया। रानी रुठेंगी अपना सुहाग लेंगी! बोली—बाई जी, मुझसे क़सूर हुआ, लीजिए अब जाती हूँ। छींकते नाक कटती है तो मेरा निबाह यहाँ न होगा। ईश्वर ने मुँह दिया है तो आहार भी देगा चार घर से माँगूँगी तो मेरे पेट को हो जाएगा। उस छोकरी ने मुझे खड़े-खड़े निकलवा दिया। बताओ मैंने तुमसे उसकी कौन सी शिकायत की थी? उसकी क्या चर्चा की थी? मैं तो उसका बखान कर रही थी। मगर बड़े आदमियों का गुस्सा भी बड़ा होता है। अब बताओ मैं किसकी होकर रहूँ? आठ दिन इसी तरह टुकड़े माँगते हो गये। एक भतीजी उन्हीं के यहाँ लौंडियों में नौकर थी, उसी दिन उसे भी निकाल दिया। तुम्हारी बदौलत, जो कभी न किया था, वह करना पड़ा, तुम्हें काहे को दोष लगाऊँ, क़िस्मत में जो कुछ लिखा था, वह देखना पड़ा।
मगनदास सन्नाटे में आ गया। आह मिज़ाज का यह हाल है, यह घमण्ड, यह शान! मालिन को इत्मीनान दिलाया। उसके पास अगर दौलत होती तो उसे मालामाल कर देता। सेठ मक्खनलाल की बेटी को भी मालूम हो जाता कि रोज़ी की कुंजी उसी के हाथ में नहीं है। बोला—तुम फ़िक्र न करो, मेरे घर में आराम से रहो अकेले मेरा जी भी नहीं लगता। सच कहूँ तो मुझे तुम्हारी तरह एक औरत की तलाश थी, अच्छा हुआ तुम आ गयीं।
मालिन ने आँचल फैलाकर असीम दिया—बेटा तुम जुग-जुग जियो बड़ी उमिर हो, यहाँ कोई घर मिले तो मुझे दिलवा दो। मैं यहाँ रहूँगी तो मेरी भतीजी कहाँ जाएगी। वह बेचारी शहर में किसके आसरे रहेगी।
मगनदास के ख़ून में जोश आया। उसके स्वाभिमान को चोट लगी। उन पर यह आफ़त मेरी लायी हुई है। उनकी इस आवारागर्दी का जिम्मेदार मैं हूँ। बोला—कोई हर्ज़ न हो तो उसे भी यहीं ले आओ। मैं दिन को यहाँ बहुत कम रहता हूँ। रात को बाहर चारपाई डालकर पड़ रहा करुँगा। मेरी वजह से तुम लोगों को कोई तकलीफ़ न होगी। यहाँ दूसरा मकान मिलना मुश्किल है। यही झोपड़ा बड़ी मुश्किलों से मिला है। यह अँधेरनगरी है जब तुम्हारा सुभीता कहीं लग जाय तो चली जाना।
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