कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
317 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
मगनदास को क्या मालूम था कि हज़रत इश्क़ उसकी ज़बान पर बैठे हुए उससे यह बात कहला रहे हैं। क्या यह ठीक है कि इश्क़ पहले माशूक़ के दिल में पैदा होता है?
नागपुर इस गाँव से बीस मील की दूरी पर था। चम्मा उसी दिन चली गई और तीसरे दिन रम्भा के साथ लौट आई। यह उसकी भतीजी का नाम था। उसके आने से झोपड़े में जान सी पड़ गई। मगनदास के दिमाग़ में मालिन की लड़की की जो तस्वीर थी उसका रम्भा से कोई मेल न था। वह सौंदर्य नाम की चीज़ का अनुभवी जौहरी था मगर ऐसी सूरत जिस पर जवानी की ऐसी मस्ती और दिल का चैन छीन लेनेवाला ऐसा आकर्षण हो उसने पहले कभी नहीं देखा था। उसकी जवानी का चाँद अपनी सुनहरी और गम्भीर शान के साथ चमक रहा था। सुबह का वक़्त था मगनदास दरवाजे़ पर पड़ा ठण्डी–ठण्डी हवा का मज़ा उठा रहा था। रम्भा सिर पर घड़ा रक्खे पानी भरने को निकली। मगनदास ने उसे देखा और एक लम्बी साँस खींचकर उठ बैठा। चेहरा-मोहरा बहुत ही मोहक। ताज़े फूल की तरह खिला हुआ चेहरा, आँखों में गम्भीर सरलता। मगनदास को उसने भी देखा। चेहरे पर लाज की लाली दौड़ गई। प्रेम ने पहला वार किया।
मगनदास सोचने लगा—क्या तक़दीर यहाँ कोई और गुल खिलानेवाली है! क्या दिल मुझे यहाँ भी चैन न लेने देगा। रम्भा, तू यहाँ नाहक आयी, नाहक एक ग़रीब का ख़ून तेरे सर पर होगा। मैं तो अब तेरे हाथों बिक चुका, मगर क्या तू भी मेरी हो सकती है? लेकिन नहीं, इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं। दिल का सौदा सोच-समझकर करना चाहिए। तुमको अभी ज़ब्त करना होगा। रम्भा सुन्दरी है मगर झूठे मोती की आब और ताब उसे सच्चा नहीं बना सकती। तुम्हें क्या ख़बर कि उस भोली लड़की के कान प्रेम के शब्द से परिचित नहीं हो चुके है? कौन कह सकता है कि उसके सौन्दर्य की वाटिका पर किसी फूल चुनने वाले के हाथ नहीं पड़ चुके हैं? अगर कुछ दिनों की दिलबस्तगी के लिए कुछ चाहिए तो तुम आज़ाद हो मगर यह नाजुक मामला है, जरा सम्हल के क़दम रखना। पेशेवर जातों में दिखाई पड़नेवाला सौन्दर्य अकसर नैतिक बन्धनों से मुक्त होता है।
|