लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


दयाशंकर—नहीं, कुछ तो जरूर चाहती हो वर्ना चार दिन तक बिना दाना-पानी के रहने का क्या मतलब! क्या मुझ पर जान देने की ठानी है? अगर यही फ़ैसला है तो बेहतर है तुम यों जान दो और मैं क़त्ल के जुर्म में फाँसी पाऊँ, किस्सा तमाम हो जाये। अच्छा होगा, दुनिया की परेशानियों से छुटकारा हो जाएगा।

यह मन्तर बिलकुल बेअसर न रहा। गिरिजा आँखों में आँसू भरकर बोली—तुम खामखाह मुझसे झगड़ना चाहते हो और मुझे झगड़े से नफ़रत है। मैं तुमसे न बोलती हूँ और न चाहती हूँ कि तुम मुझसे बोलने की तकलीफ़ गवारा करो। क्या आज शहर में कहीं नाच नहीं होता, कहीं हाकी मैच नहीं है, कहीं शतरंज नहीं बिछी हुई है। वहीं तुम्हारी तबियत जमती है, आप वहीं जाइए, मुझे अपने हाल पर रहने दीजिए मैं बहुत अच्छी तरह हूँ।

दयाशंकर करुण स्वर में बोले—क्या तुमने मुझे ऐसा बेवफ़ा समझ लिया है?

गिरिजा—जी हाँ, मेरा तो यही तजुर्बा है।

दयाशंकर—तो तुम सख़्त ग़लती पर हो। अगर तुम्हारा यही ख़्याल है तो मैं कह सकता हूँ कि औरतों की अन्तर्दृष्टि के बारे में जितनी बातें सुनी हैं वह सब गलत हैं। गिरजन, मेरे भी दिल है…

गिरिजा ने बात काटकर कहा—सच, आपके भी दिल है यह आज नयी बात मालूम हुई।

दयाशंकर कुछ झेंपकर बोले—ख़ैर जैसा तुम समझो। मेरे दिल न सही, मेरे जिगर न सही, दिमाग़ तो साफ़ जाहिर है कि ईश्वर ने मुझे नहीं दिया वर्ना वकालत में फ़ेल क्यों होता? तो गोया मेरे शरीर में सिर्फ़ पेट है, मैं सिर्फ़ खाना जानता हूँ और सचमुच है भी ऐसा ही, तुमने मुझे कभी फाका करते नहीं देखा। तुमने कई बार दिन-दिन भर कुछ नहीं खाया है, मैं पेट भरने से कभी बाज़ नहीं आया। लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ है कि दिल और जिगर जिस कोशिश में असफल रहे वह इसी पेट ने पूरी कर दिखाई या यों कहो कि कई बार इसी पेट ने दिल और दिमाग और जिगर का काम कर दिखाया है और मुझे अपने इस अजीब पेट पर कुछ गर्व होने लगा था मगर अब मालूम हुआ कि मेरे पेट की बेहयाइयाँ लोगों को बुरी मालूम होती हैं…इस वक़्त मेरा खाना न बने। मैं कुछ न खाऊँगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book