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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


मैज़िनी इन्हीं ख़यालों में डूबा हुआ था कि उसका दोस्त रफ़ेती जो उसके साथ निर्वासित किया गया था, इस कोठरी में दाख़िल हुआ। उसके हाथ में एक बिस्कुट का टुकड़ा था। रफ़ेती उम्र में अपने दोस्त से दो-चार बरस छोटा था। भंगिमा से सज्जनता झलक रही थी। उसने मैज़िनी का कंधा पकड़कर हिलाया और कहा—जोज़ेफ़, यह लो, कुछ खा लो।

मैज़िनी ने चौंककर सर उठाया और बिस्कुट देखकर बोला—यह कहां से लाये? तुम्हारे पास पैसे कहां थे?

रफ़ेती—पहले खा लो फिर यह बातें पूछना, तुमने कल शाम से कुछ नहीं खाया है।

मैज़िनी—पहले यह बता दो, कहां से लाये। जेब में तम्बाकू का डिब्बा भी नज़र आता है। इतनी दौलत कहाँ हाथ लगी?

रफ़ेती—पूछकर क्या करोगे? वही अपना नया कोट जो मां ने भेजा था, गिरो रख आया हूँ।

मैज़िनी ने एक ठंडी साँस ली, आँखों से आँसू टप-टप ज़मीन पर गिर पड़े। रोते हुए बोला—यह तुमने क्या हरकत की, क्रिसमस के दिन आते हैं, उस वक़्त क्या पहनोगे? क्या इटली के एक लखपती व्यापारी का इकलौता बेटा क्रिसमस के दिन भी ऐसे ही फटे-पुराने कोट में बसर करेगा? ऐं?

रफ़ेती—क्यों, क्या उस वक़्त तक कुछ आमदनी न होगी, हम तुम दोनों नये जोड़े बनवायेंगे और अपने प्यारे देश की आने-वाली आज़ादी के नाम पर खुशियाँ मनायेंगे।

मैज़िनी—आमदनी की तो कोई सूरत नज़र नहीं आती। जो लेख मासिक पत्रिकाओं के लिए लिखे गये थे, वह वापस ही आ गये। घर से जो कुछ मिलता है, वह कब का खत्म हो चुका। अब और कौन-सा ज़रिया है।

रफ़ेती—अभी क्रिसमस को हफ़्ता भर पड़ा है। अभी से उसकी क्या फ़िक्र करें। और अगर मान लो यही कोट पहना तो क्या? तुमने नहीं मेरी बीमारी में डॉक्टर की फ़ीस के लिए मैग्डलीन की अँगूठी बेच डाली थी? मैं जल्दी ही यह बात उसे लिखने वाला हूँ, देखना तुम्हें कैसा बनाती है!

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