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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


क्रिसमस का दिन है, लन्दन में चारों तरफ़ खुशियों की गर्म बाज़ारी है। छोटे-बड़े, अमीर-ग़रीब सब अपने-अपने घर खुशियाँ मना रहे हैं और अपने अच्छे से अच्छे कपड़े पहनकर गिरजाघरों में जा रहे हैं। कोई उदास सूरत नज़र नहीं आती। ऐसे वक़्त में मैज़िनी और रफ़ेती दोनों उसी छोटी सी अँधेरी कोठरी में सर झुकाये ख़ामोश बैठे हैं। मैज़िनी ठण्डी आहें भर रहा है और रफ़ेती रह-रहकर दरवाजे पर आता है और बदमस्त शराबियों को और दिनों से ज़्यादा बहकते और दीवानेपन की हरकतें करते देखकर अपनी ग़रीबी और मुहताजी की फ़िक्र दूर करना चाहता है। अफ़सोस! इटली का सरताज जिसकी एक ललकार पर हज़ारों आदमी अपना खून बहाने के लिए तैयार हो जाते थे, आज ऐसा मुहताज हो रहा है कि उसे खाने का ठिकाना नहीं। यहाँ तक कि आज सुबह से उसने एक सिगार भी नहीं पिया। तम्बाकू ही दुनिया की वह नेमत थी जिससे वह हाथ नहीं खींच सकता था और वह भी आज उसे नसीब न हुआ। मगर इस वक़्त उसे अपनी फ़िक्र नहीं रफ़ेती, नौजवान, खुशहाल और खूबसूरत होनहार रफ़ेती की फिक्र जी पर भारी हो रही है। वह पूछता है कि मुझे क्या हक़ है कि मैं एक ऐसे आदमी को अपने साथ गरीबी की तकलीफ़ें झेलने पर मजबूर करूँ जिसके स्वागत के लिए दुनिया की सब नेमतें बाँहें खोले खड़ी हैं।

इतने में एक चिट्ठीरसा ने पूछा—जोज़ेफ़ मैज़िनी यहाँ कहीं रहता है? अपनी चिट्ठी ले जा।

रफ़ेती ने खत ले लिया और खुशी से जोश से उछल-कर बोला—जोज़ेफ़, यह लो मैग्डलीन का खत है। मैज़िनी ने चौंककर ख़त ले लिया और बड़ी बेसब्री से खोला। लिफ़ाफ़ा खोलते ही थोड़े से बालों का एक गुच्छा गिर पड़ा, जो मैग्डलीन ने क्रिसमस के उपहार के रूप में भेजा था। मैज़िनी ने उस गुच्छे को चूमा और उसे उठाकर अपने सीने की जेब में खोंस लिया। ख़त में लिखा था—

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