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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


प्यारी मैग्डलीन,
तुम्हारा ख़त उस अनमोल तोहफ़े के साथ आया।मैं तुम्हारा हृदय से कृतज्ञ हूँ कि तुमने मुझ जैसे बेकस और बेबस आदमी को इस भेंट के क़ाबिल समझा। मैं उसकी हमेशा क़द्र करूँगा। यह मेरे पास हमेशा एक सच्चे निःस्वार्थ और अमर प्रेम की स्मृति के रूप में रहेगी और जिस वक़्त यह मिट्टी का शरीर क़ब्र की गोद में जायगा मेरी आख़िरी वसीयत यह होगी कि यह यादगार मेरे जनाज़े के साथ दफ़न कर दी जाय। मैं शायद खुद उस ताक़त का अन्दाज़ा नहीं लगा सकता जो मुझे इस ख़याल से मिलती है, कि दुनिया में जहाँ चारों तरफ़ मेरे बारे में बदगुमानियाँ फैल रही हैं, कम से कम एक ऐसी नेक औरत है जो मेरी नियत की सफाई और मेरी बुराइयों से पाक कोशिशों पर सच्ची निष्ठा रखती है और शायद तुम्हारी हमदर्दी का यक़ीन है कि मैं ज़िन्दगी की ऐसी कठिन परीक्षाओं में सफल होता जाता हूँ।

मगर प्यारी बहन, मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है। तुम मेरी तकलीफ़ों के ख़याल से अपना दिल मत दुखाना। मैं बहुत आराम से हूँ। तुम्हारे प्रेम जैसी अक्षयनिधि पाकर भी अगर मैं कुछ थोड़े से शारीरिक कष्टों का रोना रोऊँ तो मुझ जैसा अभागा आदमी दुनिया में कौन होगा।

मैंने सुना है, तुम्हारी सेहत रोज़-ब-रोज़ गिरती जाती है। मेरा जी बेअख्तियार चाहता है कि तुझे देखूँ। काश मैं आजाद होता, काश मेरा दिल इस क़ाबिल होता कि तुझे भेंट चढ़ा सकता। मगर एक पज़मुर्दा, उदास दिल तेरे काबिल नहीं। मैग्डलीन, खुदा के वास्ते अपनी सेहत का ख़याल रक्खो, मुझे शायद इससे ज़्यादा और किसी बात की तक़लीफ न होगी कि प्यारी मैग्डलीन तकलीफ़ में है और मेरे लिए! तेरा पाक़ीज़ा चेहरा इस वक़्त निगाहों के सामने है। मेगा! देखो मुझसे नाराज़ न हो। खुदा की क़सम, मैं तुम्हारे क़ाबिल नहीं हूँ। आज क्रिसमस का दिन है, तुम्हें क्या तोहफ़ा भेजूँ। खुदा तुम पर हमेशा अपनी बेइन्तहा बरकतों का साया रक्खे। अपनी माँ को मेरी तरफ़ से सलाम कहना। तुम लोगों को देखने की इच्छा है। देखें कब तक पूरी होती है।

तेरा
ज़ोज़ेफ।

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