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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


आख़िर प्रेम सिंह ने उसे कंधे पर चढ़ा लिया और दोपहर तक खेतों में घूमता रहा। राजा कुछ देर तक चुप रहता और फिर चौंककर पूछने लगता—अम्माँ कहाँ है?

बूढ़े सिपाही के पास इस सवाल का जवाब न था। वह बच्चे के पास से एक पल को भी नहीं जाता और उसे बातों में लगाये रहता कि कहीं वह फिर न पूछ बैठे, अम्माँ कहाँ है? बच्चों की स्मरणशक्ति कमज़ोर होती है राजा कई दिनों तक बेक़रार रहा, आख़िर धीरे-धीरे माँ की याद उसके दिल से मिट गयी।

इस तरह तीन महीने गुजर गये। एक रोज शाम के वक़्त राजा अपने दरवाज़े पर खेल रहा था कि वृन्दा आती हुई दिखायी दी। राजा ने उसकी तरफ़ गौर से देखा, जरा झिझका, फिर दौड़कर उसकी टाँगों से लिपट गया और बोला—अम्माँ, आयी, अम्माँ आयी।

वृन्दा की आँखों से आँसू जारी हो गये। उसने राजा को गोद में उठा लिया और कलेजे से लगाकर बोली—बेटा, अभी मैं नहीं आयी, फिर कभी आऊँगी।

राजा इसका मतलब न समझा। वह उसका हाथ पकड़कर खींचता हुआ घर की तरफ़ चला। माँ की ममता वृन्दा को दरवाज़े तक ले गयी। मगर चौखट से आगे न ले जा सकी। राजा ने बहुत खींचा मगर वह आगे न बढ़ी। तब राजा की बड़ी-बड़ी आँखों में आँसू भर आये। उसके होंठ फैल गये और वह रोने लगा।

प्रेमसिंह उसका रोना सुनकर बाहर निकल आया, देखा तो वृन्दा खड़ी है। चौंककर बोला—वृन्दा। मगर वृन्दा कुछ जवाब न दे सकी।

प्रेमसिंह ने फिर कहा—बाहर क्यों खड़ी हो, अन्दर आओ। अब तक कहाँ थीं?

वृन्दा ने आँसू पोंछते हुए जवाब दिया—मैं अन्दर न आऊँगी।

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