लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


महाराज बोले—श्यामा, इन्साफ़ किसका ख़ून चाहता है?

वृन्दा—जिसे आप दोषी ठहरायें। जिस दिन हुजूर ने रात को महानगर में पड़ाव किया था उसी रात को आपके सिपाही मुझे ज़बरदस्ती खींचकर पड़ाव पर लाये और मुझे इस क़ाबिल नहीं रक्खा कि लौटकर अपने घर जा सकूँ। मुझे उनकी नापाक निगाहों का निशाना बनना पड़ा। उनकी बेबाक ज़बानों ने, उनके शर्मनाक इशारों ने मेरी इज्जत ख़ाक में मिला दी। आप वहाँ मौजूद थे और आपकी बेकस रैयत पर यह जुल्म किया जा रहा था। कौन मुजरिम है? इन्साफ़ किसका ख़ून चाहता है? इसका फ़ैसला आप करें।

रनजीतसिंह ज़मीन पर आँखें गड़ाये सुनते रहे। वृन्दा ने जरा दम लेकर फिर कहना शुरू किया—मैं विधवा स्त्री हूँ। मेरी इज्ज़त आबरू के रखवाले आप हैं। पति-वियोग के साढ़े तीन साल मैंने तपस्विनी बनकर काटे थे। मगर आपके आदमियों ने मेरी तपस्या धूल में मिला दी। मैं इस योग्य नहीं रही कि लौटकर अपने घर जा सकूँ। अपने बच्चे के लिए मेरी गोद अब नहीं खुलती। अपने बूढ़े बाप के सामने मेरी गर्दन नहीं उठती। मैं अब अपने गाँव की औरतों से आँखें चुराती हूँ। मेरी इज्ज़त लुट गयी। औरत की इज्ज़त कितनी कीमती चीज़ है, इसे कौन नहीं जानता? एक औरत की इज्ज़त के पीछे लंका का शानदार राज्य मिट गया। एक ही औरत की इज्ज़त के लिए कौरव वंश का नाश हो गया। औरतों की इज्ज़त के लिए हमेशा ख़ून की नदियाँ बही हैं और राज्य उलट गये हैं। मेरी इज्ज़त आपके आदमियों ने ली है, इसका जवाबदेह कौन है। इन्साफ़ किसका ख़ून चाहता है, इसका फ़ैसला आप करें।

वृन्दा का चेहरा लाल हो गया। महाराजा रनजीतसिंह एक गँवार देहाती औरत का यह हौसला, यह ख़याल और जोशीली बात सुनकर सकते में आ गये। काँच का टुकड़ा टूटकर तेज धारवाला छुरा हो जाता है। वही कैफ़ियत इन्सान के टूटे हुए दिल की है।

आख़िर महाराज ने ठंडी साँस ली और हसरत भरे लहजे में बोले—श्यामा, इंसाफ़ जिसका ख़ून चाहता है, वह मैं हूँ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book