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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


इतना कहने के साथ महाराज रनजीतसिंह का चेहरा भभक उठा और दिल बेक़ाबू हो गया। तात्कालिक भावनाओं के नशे में आदमी का दिल आसमान की बुलन्दियों तक जा पहुँचता है। काँटे के चुभने से कराहने वाला इनसान इसी नशे में मस्त होकर खंजर की नोक कलेजे में चुभो लेता है। पानी की बौछार से डरनेवाला इन्सान गले-गले पानी में अकड़ता हुआ चला जाता है। इस हालत में इन्सान का दिल असाधारण शक्ति और असीम उत्साह अनुभव करने लगता है। इसी हालत में इन्सान छोटे से छोटे, ज़लील से ज़लील काम करता है और इसी हालत में इन्सान अपने वचन और कर्म की ऊँचाई से देवताओं को भी लज्जित कर देता है। महाराजा रनजीतसिंह उद्विग्न होकर उठ खड़े हुए और ऊँची आवाज़ में बोले—श्यामा, इंसाफ़ जिसका खून चाहता है, वह मैं हूँ! तुम्हारे साथ जो जुल्म हुआ है उसका जवाबदेह मैं हूँ। बुजुर्गों ने कहा है कि ईश्वर के सामने राजा अपने नौकरों की सख्ती और जबरदस्ती का ज़िम्मेदार होता है।

यह कहकर राजा ने तेजी के साथ अचकन के बन्द खोल दिये और वृन्दा के सामने घुटनों के बल, सीना फैलाकर बैठते हुए बोले—श्यामा, तुम्हारे पहलू में तलवार छिपी हुई है। वह विक्रमादित्य की तलवार है। उसने कितने ही बार न्याय की रक्षा की है। आज एक अभागे राजा के ख़ून से उसकी प्यास बुझा दो। बेशक वह राजा अभागा है जिसके राज्य में अनाथों पर अत्याचार होता है।

वृन्दा के दिल में अब एक ज़बरदस्त तब्दीली पैदा हुई, बदले की भावना ने प्रेम और आदर को जगह दी। रनजीतसिंह ने अपनी ज़िम्मेदारी मान ली, वह उसके सामने एक मुजरिम की हैसियत में इन्साफ़ की तलवार का निशाना बनने के लिए खड़े हैं, उनकी जान अब उसकी मुट्ठी में है। उन्हें मारना या जिलाना अब उसका अख़्तियार है।

यह ख़याल उसके बदले की भावना को ठंडा कर देने के लिए काफ़ी थे। प्रताप और ऐश्वर्य जब अपने स्वर्ण-सिंहासन से उतरकर दया की याचना करने लगता है तो कौन ऐसा हृदय है जो पसीज न जायगा? वृन्दा ने दिल पर सब्र करके पहलू से ख़ंजर निकाला, मगर वार न कर सकी। तलवार उसके हाथ से छूट कर गिर पड़ी।

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