कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
6 पाठकों को प्रिय 325 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
चैतन्यदास ने अविश्वास के भाव से कहा मानों उन्हें विस्मयकारी बात सुन पड़ी हो– तपेदिक हो गया!
डाक्टर ने खेद प्रकट करते हुए कहा– यह रोग बहुत ही गुप्तरीति से शरीर में प्रवेश करता है।
चैतन्यदास– मेरे खानदान में तो यह रोग किसी को न था।
डाक्टर– सम्भव है, मित्रों से इसके जर्म (कीटाणु) मिले हो।
चैतन्यदास कई मिनट तक सोचने के बाद बोले– अब क्या करना चाहिए।
डाक्टर– दवा करते रहिये। अभी फेफड़ों तक असर नहीं हुआ है इनके अच्छे होने की आशा है।
चैतन्यदास– आपके विचार में कब तक दवा का असर होगा?
डाक्टर– निश्चय पूर्वक नहीं कह सकता। लेकिन तीन चार महीने में वे स्वस्थ हो जायेंगे। जाड़ों में इस रोग का जोर कम हो जाया करता है।
चैतन्यदास– अच्छे हो जाने पर ये पढ़ने में परिश्रम कर सकेंगे?
डाक्टर– मानसिक परिश्रम के योग्य तो ये शायद ही हो सकें।
चैतन्यदास– किसी सेनेटोरियम (पहाड़ी स्वास्थयालय) में भेज दूँ तो कैसा हो?
डाक्टर– बहुत ही उत्तम।
चैतन्यदास– तब ये पूर्णरीति से स्वस्थ हो जाएँगे?
डाक्टर– हो सकते हैं, लेकिन इस रोग को दबा रखने के लिए इनका मानसिक परिश्रम से बचना ही अच्छा है।
चैतन्यदास नैराश्य भाव से बोले– तब तो इनका जीवन ही नष्ट हो गया।
|