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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


राजा साहब ने मेरा उत्साह बढ़ाते हुए कहा–  ‘हाँ, आप। आप जानते हैं, मैंने इतने आदमियों को छोड़कर आपकों क्यों अपना विश्वासपात्र बनाया और क्यों आपसे यह भिक्षा मांगी? यहाँ ऐसे आदमियों की कमी नहीं है, जो मेरा इशारा पाते ही उस दुष्ट के टुकड़े उड़ा देगें, सरे बाज़ार उसके रक्त से भूमि को रंग देंगे। जी हाँ, एक इशारे से उसकी हड्डियों का बुरादा बना सकता हूँ।, उसके नहों में कीलें ठुकवा सकता हूँ।, मगर मैंने सबकों छोड़कर आपको छाँटा, जानतें हो क्यों? इसलिए कि मुझे तुम्हारे ऊपर विश्वास है, वह विश्वास जो मुझे अपने निकटतम आदमियों पर भी नहीं, मैं जानता हूँ। कि तुम्हारे हृदय में यह भेद उतना ही गुप्त रहेगा, जितना मेरे। मुझे विश्वास है कि प्रलोभन अपनी चरम शक्ति का उपयोग करके भी तुम्हें नहीं डिगा सकता। पाशविक अत्याचार भी तुम्हारे अधरों को नहीं खोल सकते, तुम बेवफाई न करोंगे, दगा न करोंगे, इस अवसर से अनुचित लाभ न उठाओगे। जानते हो, इसका पुरस्कार क्या होगा? इसके विषय में तुम कुछ भी शंका न करो। मुझमें और चाहे कितने ही दुर्गुण हों, कृतघ्नता का दोष नहीं है। बड़े से बड़ा पुरस्कार जो मेरे अधिकार में है, वह तुमको दिया जायगा। मन सब, जागीर, धन, सम्मान सब तुम्हारी इच्छानुसार दिये जायँगे। इसका सम्पूर्ण अधिकार तुमको दिया जायगा, कोई दखल न देगा। तुम्हारी महत्वाकांक्षा को उच्चतम शिखर तक उड़ने की आज़ादी होगी। तुम ख़ुद फ़रमान लिखोगे और मैं उस पर आँखें बंद करके दस्तख़त करूंगा; बोलो, कब जाना चाहते हो? उसका नाम और पता इस काग़ज़ पर लिखा हुआ है, इसे अपने हृदय पर अंकित कर लो, और काग़ज़ फाड़ डालो। तुम खुद समझ सकते हो कि मैंने कितना बड़ा भार तुम्हारे ऊपर रखा है। मेरी आबरू, मेरी जान, तुम्हारी मुट्ठी में है। मुझे विश्वास है कि तुम इस काम को सुचारू रूप से पूरा करोगे। जिन्हें अपना सहयोगी बनाओगे, वे भरोसे के आदमी होंगे। तुम्हें अधिकतम बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता और धैर्य से काम लेना पड़ेगा। एक असंयत शब्द, एक क्षण का विलम्ब, ज़रा-सी लापरवाही मेरे और तुम्हारे दोनों के लिए प्राणघातक होगी। दुश्मन घात में बैठा हुआ है, ‘कर तो डर, न कर तो डर’ का मामला है। यों ही गद्दी से उतारने के मंसूबें सोचे जा रहे हैं, इस रहस्य के खुल जाने पर क्या दुर्गति होगी, इसका अनुमान तुम आप कर सकते हो। मैं बर्मा में नज़रबन्द कर दिया जाऊँगा, रियासत गैरों के हाथ में चली जायगी और मेरा जीवन नष्ट हो जायगा। में चाहता हूँ कि आज ही चले जाओ। यह इम्पीरियल बैंक का चेक बुक है, मैंने चेकों पर दस्तखत कर दिये है, जब जितने रुपयों की ज़रूरत हो, ले लेना।

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