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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


‘मेरा दिमाग सातवें आसमान पर जा पहुँचा। अब मुझे मालूम हुआ कि प्रलोभन में ईमान को बिगाड़ने की कितनी शक्ति होती है। मुझे जैसे कोई नशा हो गया।’ मैंने एक किताब में पढ़ा था कि अपने भाग्य-निर्माण का अवसर हर एक आदमी को मिलता है और एक ही बार। जो इस अवसर को दोनों हाथो से पकड़ लेता है, वह मर्द है, जो आगा-पीछा में पड़कर उसे छोड़ देता है, वह कायर होता है। एक को धन, यश, गौरव नसीब होता है और दूसरा खेद, लज्जा और दुर्दशा में रो-रोकर जिंदगी के दिन काटता है। फैसला करने के लिए केवल एक क्षण का समय मिलता है। वह समय कितना बहुमूल्य होता है। मेरे जीवन में यह वही अवसर था। मैंने उसे दोनों हाथों से पकड़ने का निश्चय कर लिया। सौभाग्य अपनी सर्वोत्तम सिद्धियों का थाल लिये मेरे सामने हाज़िर है, वह सारी विभूतियों; जिनके लिए आदमी जीता-मरता है, मेरा स्वागत करने के लिए खड़ी है। अगर इस समय मैं। उनकी उपेक्षा करूँ, तो मुझ जैसा अभागा आदमी संसार में न होगा। माना कि बड़े जोखिम का काम है, लेकिन पुरस्कार तो देखो। दरिया में गोता लगाने ही से तो मोती मिलता है, तख्त पर बैठे हुए कायरों के लिए कोड़ियों और घोंघों के सिवा और क्या है? माना कि बेगुनाह के ख़ून से हाथ रँगना पड़ेगा। क्या मुज़ायका! बलिदान से ही वरदान मिलता है। संसार समर भूमि है। यहाँ लाशों का जीना बनाकर उन्नति के शिखर पर चढ़ना पड़ता है। ख़ूनके नालों में तैरकर ही विजय-तट मिलता है। संसार का इतिहास देखों, सफल पुरुषों का चरित्र रक्त के अक्षरों में लिखा हुआ है। वीरो ने सदैव ख़ून के दरिया में गोते लगाये हैं, ख़ून की होलियाँ खेली है। ख़ून का डर दुर्बलता और कम हिम्मती का चिह्न है। कर्मयोगी की दृष्टि लक्ष्य पर रहती हैं, मार्ग पर नहीं, शिखर पर रहती है, मध्यवर्ती चट्टानों पर नहीं, मैंने खड़े होकर अर्ज की– गुलाम इस खिदमत के लिए हाज़िर है।’

राजा साहब ने सम्मान की दृष्टि से देखकर कहा– मुझे तुमसे यही आशा थी। तुम्हारा दिल कहता है कि यह काम पूरा कर आओगे?

‘मुझे विश्वास है।’

‘मेरा भी यही विचार था। देखो, एक-एक क्षण का समाचार भेजते रहना।’

‘ईश्वर ने चाहा तो हुजूर को शिकायत का कोई मौक़ा न मिलेगा।’

‘ईश्वर का नाम न लो, ईश्वर ऐसे मौक़े के लिए नहीं है। ईश्वर की मदद उस वक़्त मांगो, जब अपना दिल कमजोर हो। जिसकी बांहों में शक्ति, मन में संकल्प, बुद्धि में बल और साहस है, वह ईश्वर का आश्रय क्यों ले? अच्छा, जाओ और जल्द सुर्ख़रू होकर लौटो, आँखें तुम्हारी तरफ़ लगी रहेंगी।

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