कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
325 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
अभी चूँकि देर थी, मैंने सोचा, लाओ सन्ध्या कर लूँ। ज्योंही सन्ध्या के कमरे में कदम रखा, माता जी के तिरंगे चित्र पर नज़र पड़ी। मैं मूर्तिपूजक नहीं हूँ, धर्म की ओर मेरी प्रवृत्ति नहीं है, न कभी कोई व्रत रखता हूँ, लेकिन न जाने क्यो, उस चित्र को देखकर अपनी आत्मा में एक प्रकाश का अनुभव करता हूँ। उन आँखों में मुझे अब भी वही वात्सल्यमय ज्योति, वही दैवी आशीर्वात मिलता है, जिसकी बाल-स्मृति अब भी मेरे हृदय को गदगद कर देती है। वह चित्र मेरे लिए चित्र नहीं, बल्कि सजीव प्रतिमा है, जिसने मेरी सृष्टि की है और अब भी मुझे जीवन प्रदान कर रही है। उस चित्र को देखकर मैं यकायक चौंक पड़ा, जैसे कोई आदमी उस वक़्त चोर के कँधे पर हाथ रख दे जब वह सेंध मार रहा हो। इस चित्र को रोज़ ही देखा करता था, दिन में कई बार उस पर निगाह पड़ती थी पर आज मेरे मन की जो दशा हुई, वह कभी न हुई थी। कितनी लज्जा और कितना क्रोध! मानो वह कह रही थी, मुझे तुझसे ऐसी आशा न थी। मैं उस तरफ़ ताक न सका। फौरन आँखें झुका ली। उन आँखों के सामने खड़े होने की हिम्मत मुझे न हुई। वह तसवीर की आँखें न थी, सजीव, तीव्र और ज्वालामय, हृदय में पैठने वाली, नोकदार भाले की तरह हृदय में चुभने वाली आँखें थी। मुझे ऐसा मालूम हुआ, गिर पडूँगा। मैं वहीं फर्श पर बैठ गया। मेरा सिर आप ही आप झुग गया। बिल्कुल अज्ञातरूप से मानो किसी दैवी प्रेरणा से मेरे संकल्प में एक क्रान्ति-सी हो गयी। उस सत्य के पुतले, उस प्रकाश की प्रतिमा ने मेरी आत्मा को सजग कर दिया। मन-में क्या– क्या भाव उत्पन्न हुए, क्या-क्या विचार उठे, इसकी मुझे ख़बर नहीं। मैं इतना ही जानता हूँ कि मैं एक सम्मोहित दशा में घर से निकला, मोटर तैयार कराई और दस बजे राजा साहब की सेवा में जा पहुँचा। मेरे लिए उन्होंने विशेष रूप से ताकीद कर दी थी। जिस वक़्त चाहूँ, उनसे मिल सकूँ। कोई अड़चन न पड़ी। मैं जाकर नम्र भाव से बोला– हुजूर, कुछ अर्ज करना चाहता हूँ।
राजा साहब अपने विचार में इस समस्या को सुलझाकर इस वक़्त इत्मीनान की साँस ले रहे थे। मुझे देखकर उन्हें किसी नयी उलझन का संदेह हुआ। त्योरियों पर बल पड़ गये, मगर एक ही क्षण में नीति ने विजय पायी, मुस्कराकर बोले– हाँ हाँ, कहिए, कोई खास बात?
मैंने निर्भीक होकर कहा– मुझे क्षमा कीजिए, मुझसे यह काम न होगा।
राजा साहब का चेहरा पीला पड़ गया, मेरी ओर विस्मत से देखकर बोले– इसका मतलब?
|