लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

325 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


बटोही चला गया, तो रजिया ने बैलों को सानी-पानी किया, पर मन रामू ही की ओर लगा हुआ था। स्नेह-स्मृतियाँ छोटी-छोटी तारिकाओं की भाँति मन में उदित होती जाती थीं। एक बार जब वह बीमार पड़ी थी, वह बात याद आयी। दस साल हो गये। वह कैसे रात-दिन उसके सिरहाने बैठा रहता था। खाना-पीना तक भूल गया था। उसके मन में आया क्यों न चलकर देख ही आवे। कोई क्या कहेगा? किसका मुँह है जो कुछ कहे। चोरी करने नहीं जा रही हूँ। उस आदमी के पास जा रही हूँ, जिसके साथ पन्द्रह-बीस साल रही हूँ। दसिया नाक सिकोड़ेगी। मुझे उससे क्या मतलब।

रजिया ने किवाड़ बन्द किये, घर मजूर को सहेजा, और रामू को देखने चली, काँपती, झिझकती, क्षमा का दान लिये हुए।

रामू को थोड़े ही दिनों में मालूम हो गया था कि उसके घर की आत्मा निकल गयी, और वह चाहे कितना जोर करे, कितना ही सिर खपाये, उसमें स्फूर्ति नहीं आती। दासी सुन्दरी थी, शौकीन थी और फूहड़ थी। जब पहला नशा उतरा, तो ठाँय-ठाँय शुरू हुई। खेती की उपज कम होने लगी, और जो होती भी थी, वह ऊटपटाँग खर्च होती थी। ऋण लेना पड़ता था। इसी चिन्ता और शोक में उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। शुरू में कुछ परवाह न की। परवाह करके ही क्या करता। घर में पैसे न थे। अताइयों की चिकित्सा ने बीमारी की जड़ और मज़बूत कर दी और आज दस-बारह दिन से उसका दाना-पानी छूट गया था। मौत के इन्तज़ार में खाट पर पड़ा कराह रहा था। और अब वह दशा हो गयी थी जब हम भविष्य से निश्चिन्त होकर अतीत में विश्राम करते हैं, जैसे कोई गाड़ी आगे का रास्ता बन्द पाकर पीछे लौटे। रजिया को याद करके वह बार-बार रोता और दासी को कोसता– तेरे ही कारण मैंने उसे घर से निकाला। वह क्या गई, लक्ष्मी चली गयी। मैं जानता हूँ, अब भी बुलाऊँ तो दौड़ी आयेगी, लेकिन बुलाऊँ किस मुँह से! एक बार वह आ जाती और उससे अपने अपराध क्षमा करा लेती, फिर मैं खुशी से मरता। और लालसा नहीं है।

सहसा रजिया ने आकर उसके माथे पर हाथ रखते हुए पूछा– कैसा जी है तुम्हारा? मुझे तो आज हाल मिला।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book