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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


मगर खुदा जाने क्यों हम तीनों में से एक भी उसकी किसी अंदाज या रूप की प्रशंसा शब्दों में नहीं कर पाता। हमें लगता है कि हमें ठीक शब्द नहीं मिलते। जो कुछ हम कह सकते हैं उससे कहीं ज़्यादा प्रभावित हैं। कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं होती।

१ फरवरी– हम दिल्ली आ गये। इसी बीच में मुरादाबाद, नैनीताल, देहरादून वग़ैरह जगहों के दौरे किये मगर कहीं कोई खिलाड़ी न मिला। अलीगढ़ और दिल्ली से कई अच्छे खिलाड़ियों के मिलने की उम्मीद है इसलिए हम लोग वहाँ कई दिन रहेंगे। एलेविन पूरी होते ही हम लोग बम्बई आ जायेंगे और वहाँ एक महीने प्रैक्टिस करेंगे। मार्च में आस्ट्रेलियन टीम यहाँ से रवाना होगी। तब तक वह हिन्दुस्तान में सारे पहले से निश्चित मैच खेल चुकी होगी। हम उससे आखिरी मैच खेलेंगे और खुदा ने चाहा तो हिन्दुस्तान की सारी शिकस्तों का बदला चुका देंगे। सादिक और बृजेन्द्र भी हमारे साथ घूमते रहे। मैं तो न चाहता था कि ये लोग आएँ मगर हेलेन को शायद प्रेमियों के जमघट में मज़ा आता हैं हम सबके सब एक ही होटल में हैं और सब हेलेन के मेहमान हैं। स्टेशन पर पहुँचे तो सैकड़ों आदमी हमारा स्वागत करने के लिए मौजूद थे। कई औरतें भी थीं, लेकिन हेलेन को न मालूम क्यों औरतों से आपत्ति है। उनकी संगत से भागती है, खासकर सुन्दर औरतों की छाया से भी दूर रहती है हालाँकि उसे किसी सुन्दरी से जलने का कोई कारण नहीं है। यह मानते हुए भी कि हुस्न उस पर ख़त्म नहीं हो गया है, उसमें आकषर्ण के ऐसे तत्व मौजूद हैं कि कोई परी भी उसके मुक़ाबले में नहीं खड़ी हो सकती। नख-शिख ही तो सब कुछ नहीं है, रुचि का सौंदर्य, बातचीत का सौंदर्य, अदाओं का सौंदर्य भी तो कोई चीज़ है। प्रेम उसके दिल में है या नहीं खुदा जाने लेकिन प्रेम के प्रदर्शन में वह बेजोड़ है। दिलजोई और नाजबरदारी के फ़न में हम जैसे दिलदारों को भी उससे शर्मिन्दा होना पड़ता है। शाम को हम लोग नयी दिल्ली की सैर को गये। दिलकश जगह है, खुली हुई सड़कें, ज़मीन के ख़ूबसूरत टुकड़े, सुहानी रविशे। उसको बनाने में सरकार ने बेदरेग रुपया ख़र्च किया है और बेजरूरत। यह रकम रिआया की भलाई पर खर्च की जा सकती थी मगर इसको क्या कीजिए कि जनसाधारण इसके निर्माण से जितने प्रभावित हैं, उतने अपनी भलाई की किसी योजना से न होते। आप दस-पाँच मदरसे ज़्यादा खोल देते या सड़कों की मरम्मत में या, खेती की जाँच-पड़ताल में इस रुपये को खर्च कर देते मगर जनता को शान-शौकत, धन-वैभव से आज भी जितना प्रेम है उतना आपके रचनात्मक कामों से नहीं है। बादशाह की जो कल्पना उसके रोम-रोम में घुल गई है वह अभी सदियों तक न मिटेगी। बादशाह के लिए शान-शौकत ज़रूरी है। पानी की तरह रुपया बहाना ज़रूरी है। किफायतशार या कंजूस बादशाह चाहे वह एक-एक पैसा प्रजा की भलाई के लिए खर्च करे, इतना लोकप्रिय नहीं हो सकता। अंग्रेज़ मनोविज्ञान के पंडित हैं। अंग्रेज़ ही क्यों हर एक बादशाह जिसने अपने बाहुबल और अपनी बुद्धि से यह स्थान प्राप्त किया है स्वभातः मनोविज्ञान का पण्डित होता है। इसके बगैर जनता पर उसे अधिकार क्यों कर प्राप्त होता। ख़ैर, यह तो मैंने यूँही कहा। मुझे ऐसा अन्देशा हो रहा है शायद हमारी टीम सपना ही रह जाये। अभी से हम लोगों में अनबन रहने लगी है। बृजेन्द्र कदम-कदम पर मेरा विरोध करता है। मैं आम कहूँ तो वह अदबदाकर इमली कहेगा और हेलेन को उससे प्रेम है। ज़िन्दगी के कैसे-कैसे मीठे सपने देखने लगा था मगर बृजेन्द्र, कृतघ्न-स्वार्थी बृजेन्द्र मेरी ज़िन्दगी तबाह किये डालता है। हम दोनों हेलेन के प्रिय पात्र नहीं रह सकते, यह तय बात है; एक को मैदान से हटाना पड़ेगा।

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