कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
तब मुझसे बोलीं– कितने ख़ूबसूरत बच्चे है!
‘हाँ, बहुत ख़ूबसूरत।’
‘जी चाहता है, एक पाल लूँ।’
‘अभी तबियत नहीं भरी?’
‘तुम बड़े निर्मोही हो।’
चोकर ख़त्म हो गया, बकरी इत्मीनान से विदा हो गयी। दोनों बच्चे भी उसके पीछे फुदकते चले गये। देवी जी आँख में आँसू भरे यह तमाशा देखती रहीं।
गड़रिये ने चिलम भरी और घर से आग माँगने आया। चलते वक़्त बोला– कल से दूध पहुँचा दिया करूँगा। मालिक।
देवीजी ने कहा– और दोनों बच्चे क्या पियेंगे?
‘बच्चे कहाँ तक पियेंगे बहूजी। दो सेर दूध देती है, अभी दूध अच्छा न होता था, इस मारे नहीं लाया।’
मुझे रात को वह मर्मान्तक घटना याद आ गयी।
मैंने कहा– दूध लाओ या न लाओ, तुम्हारी खुशी, लेकिन बकरी को इधर न लाना।
उस दिन से न वह गड़रिया नज़र आया न वह बकरी, और न मैंने पता लगाने की कोशिश की। लेकिन देवीजी उसके बच्चों को याद करके कभी-कभी आँसू बहा लेती हैं।
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