कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
‘हाँ, सेर-सवा सेर दूध देती है।’
‘दूध आपके घर पहुँच जाया करेगा।’
‘तुम्हारी मेहरबानी।’
जिस वक़्त बकरी घर से निकली है मुझे ऐसा मालूम हुआ कि मेरे घर का पाप निकला जा रहा है। बकरी भी खुश थी गोया क़ैद से छूटी है, गड़रिये ने उसी वक़्त दूध निकाला और घर में रखकर बकरी को लिये चला गया। ऐसा बेगराज गाहक उसे ज़िन्दगी में शायद पहली बार ही मिला होगा।
एक हफ़्ते तक दूध थोड़ा-बहुत आता रहा फिर उसकी मात्रा कम होने लगी, यहाँ तक कि एक महीना ख़तम होते-होते दूध बिलकुल बन्द हो गया। मालूम हुआ बकरी गाभिन हो गयी है। मैंने ज़रा भी एतराज न किया काछी के पास गाय थी, उससे दूध लेने लगा। मेरा नौकर खुद जाकर दुहा लाता था।
कई महीने गुज़र गये। गड़रिया महीने में एक बार आकर अपना रुपया ले जाता। मैंने कभी उससे बकरी का जिक्र न किया। उसके ख़याल ही से मेरी आत्मा काँप जाती थी। गड़रिये को अगर चेहरे का भाव पढ़ने की कला आती होती तो वह बड़ी आसानी से अपनी सेवा का पुरस्कार दुगना कर सकता था।
एक दिन मैं दरवाज़े पर बैठा हुआ था कि गड़रिया अपनी बकरियों का गल्ला लिये आ निकला। मैं उसका रुपया लाने अन्दर गया, कि क्या देखता हूँ मेरी बकरी दो बच्चों के साथ मकान में आ पहुँची। वह पहले सीधी उस जगह गयी जहाँ बँधा करती थी फिर वहाँ से आँगन में आयी और शायद परिचय दिलाने के लिए मेरी बीवी की तरफ़ ताकने लगी। उन्होंने दौड़कर एक बच्चे को गोद में ले लिया और कोठरी में जाकर महीनों का जमा चोकर निकाल लायीं और ऐसी मुहब्बत से बकरी को खिलाने लगीं कि जैसे बहुत दिनों की बिछुड़ी हुई सहेली आ गयी हो। न व पुरानी कटुता थी न वह मनमुटाव। कभी बच्चे को चुमकारती थीं। कभी बकरी को सहलाती थीं और बकरी डाकगाड़ी की रफ्तार से चोकर उड़ा रही थी।
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