कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
6 पाठकों को प्रिय 325 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
देवी-1
रात भीग चुकी थी। मैं बरामदे में खड़ा था। सामने अमीनुददौला पार्क नींद में डूबा खड़ा था। सिर्फ़ एक औरत एक तकियादार बेंच पर बैठी हुई थी। पार्क के बाहर सड़क के किनारे एक फ़क़ीर खड़ा राहगीरों को दुआएं दे रहा था। खुदा और रसूल का वास्ता…राम और भगवान का वास्ता…इस अंधे पर रहम करो।
सड़क पर मोटरों और सवारियों का ताँता बन्द हो चुका था। इक्के-दुक्के आदमी नज़र आ जाते थे। फ़कीर की आवाज़ जो पहले नक्कारखाने में तूती की आवाज़ थी अब खुले मैंदान की बुलंद पुकार हो रही थी! एकाएक वह औरत उठी और इधर-उधर चौकन्नी आँखों से देखकर फ़क़ीर के हाथ में कुछ रख दिया और फिर बहुत धीमे से कुछ कहकर एक तरफ़ चली गयी। फ़क़ीर के हाथ में काग़ज़ का टुकडा नज़र आया जिसे वह बार बार मल रहा था। क्या उस औरत ने यह काग़ज़ दिया है?
यह क्या रहस्य है? उसके जानने के कूतूहल से अधीर होकर मैं नीचे आया और फ़क़ीर के पास खड़ा हो गया।
मेरी आहट पाते ही फ़क़ीर ने उस काग़ज़ के पुर्जे को दो उंगलियों से दबाकर मुझे दिखाया। और पूछा,– बाबा, देखो यह क्या चीज़ है?
मैंने देखा– दस रुपये का नोट था! बोला– दस रुपये का नोट है, कहाँ पाया?
फ़क़ीर ने नोट को अपनी झोली में रखते हुए कहा-कोई खुदा की बन्दी दे गई है।
मैंने और कुछ न कहा। उस औरत की तरफ़ दौड़ा जो अब अँधेरे में बस एक सपना बनकर रह गयी थी।
|