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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


माया के चेहरे की कठोरता जाती रही। उसकी जगह जायज गुस्से की गर्मी पैदा हुई। बोली– इसका आपके के पास कोई सबूत है कि उन्होंने मुलज़िमों पर ऐसी सख्तियां कीं?

‘यह सारी बातें आमतौर पर मशहूर थीं। लाहौर का बच्चा-बच्चा जानता है। मैंने खुद अपनी आँखों से देखीं, इसके सिवा मैं और क्या सबूत दे सकता हूँ उन बेचारों का बस इतना कसूर था कि वह हिन्दुस्तान के सच्चे दोस्त थे, अपना सारा वक़्त प्रजा की शिक्षा और सेवा में खर्च करते थे। भूखे रहते थे, प्रजा पर पुलिस हुक्काम की सख़्तियाँ न होने देते थे, यही उनका गुनाह था और इसी गुनाह की सजा दिलाने में मिस्टर व्यास पुलिस के दाहिने हाथ बने हुए थे!’

माया के हाथ से खंज़र गिर पड़ा। उसकी आँखों में आँसू भर आये, बोली– मुझे न मालूम था कि वे ऐसी हरकते भी कर सकते हैं।

ईश्वरदास ने कहा– यह न समझिए कि मैं आपकी तलवार से डर कर वकील साहब पर झूठे इल्ज़ाम लगा रहा हूँ। मैंने कभी ज़िन्दगी की परवाह नहीं की। मेरे लिए कौन रोने वाला बैठा हुआ है जिसके लिए ज़िन्दगी की परवाह करूँ। अगर आप समझती हैं कि मैंने अनुचित हत्या की है तो आप इस तलवार को उठाकर इस ज़िन्दगी का ख़ात्मा कर दीजिए, मैं जरा भी न झिझकूँगा। अगर आप तलवार न उठा सकें तो पुलिस को ख़बर कर दीजिए, वह बड़ी आसानी से मुझे दुनिया से रुख़सत कर सकती है। सबूत मिल जाना मुश्किल न होगा। मैं खुद पुलिस के सामने जुर्म का इक़बाल कर लेता मगर मैं इसे जुर्म नहीं समझता। अगर एक जान से सैकड़ों जाने बच जाएं तो वह ख़ून नहीं है। मैं सिर्फ़ इसलिए जिन्दा रहना चाहता हूँ कि शायद किसी ऐसे ही मौके पर मेरी फिर ज़रूरत पड़े।

माया ने रोते हुए– अगर तुम्हारा बयान सही है तो मैं अपना, ख़ूनमाफ करती हूँ तुमने जो किया या बेजा किया इसका फैसला ईश्वर करेंगे। तुमसे मेरी प्रार्थना है कि मेरे पति के हाथों जो घर तबाह हुए हैं। उनका मुझे पता बतला दो, शायद मैं उनकी कुछ सेवा कर सकूँ।

- प्रेमचालीसी’ से
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