लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

325 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


एक दिन एक परदेसी गाँव में आ निकला। बहुत ही कमजोर, दीन-हीन आदमी था। एक पेड़ के नीचे सत्तू खाकर लेटा। एकाएक मुन्नी उधर से जा निकली। मुसाफ़िर को देखकर बोली– कहाँ जाओगे?

मुसाफ़िर ने बेरुखी से जवाब दिया– जहन्नुम!

मुन्नी ने मुस्कराकर कहा– क्यों, क्या दुनिया में जगह नहीं?

‘औरों के लिए होगी, मेरे लिए नहीं।’

‘दिल पर कोई चोट लगी है?’

मुसाफ़िर ने ज़हरीली हंसी हंसकर कहा– बदनसीबों की तक़दीर में और क्या है! रोना-धोना और डूब मरना, यही उनकी ज़िन्दगी का खुलासा है। पहली दो मंज़िल तो तय कर चुका, अब तीसरी मंज़िल और बाकी है, कोई दिन वह पूरी हो जायेगी; ईश्वर ने चाहा तो बहुत जल्द।

यह एक चोट खाये हुए दिल के शब्द थे। ज़रूर उसके पहलू में दिल है। वर्ना यह दर्द कहाँ से आता? मुन्नी बहुत दिनों से दिल की तलाश कर रही थी बोली– कहीं और वफ़ा की तलाश क्यों नहीं करते?

मुसाफ़िर ने निराशा के भव से उत्तर दिया– तेरी तक़दीर में नहीं, वर्ना मेरा क्या बना-बनाया घोंसला उजड़ जाता? दौलत मेरे पास नहीं। रूप-रंग मेरे पास नहीं, फिर वफ़ा की देवी मुझ पर क्यों मेहरबान होने लगी? पहले समझता था वफ़ा दिल के बदले मिलती है, अब मालूम हुआ और चीजों की तरह वह भी सोने-चाँदी से ख़रीदी जा सकती है।

मुन्नी को मालूम हुआ, मेरी नज़रों ने धोखा खाया था। मुसाफ़िर बहुत काला नहीं, सिर्फ़ साँवला था। उसका नाक-नक्शा भी उसे आकर्षक जान पड़ा। बोली– नहीं, यह बात नहीं, तुम्हारा पहला ख़याल ठीक था।

यह कहकर मुन्नी चली गयी। उसके हृदय के भाव उसके संयम से बाहर हो रहे थे। मुसाफ़िर किसी ख़याल में डूब गया। वह इस सुन्दरी की बातों पर गौर कर रहा था, क्या सचमुच यहाँ वफ़ा मिलेगी? क्या यहाँ भी तक़दीर धोखा न देगी?

मुसाफ़िर ने रात उसी गाँव में काटी। वह दूसरे दिन भी न गया। तीसरे दिन उसने एक फूस का झोंपड़ा खड़ा किया। मुन्नी ने पूछा– यह झोपड़ा किसके लिए बनाते हो?

मुसाफ़िर ने कहा– जिससे वफ़ा की उम्मीद है।

‘चले तो न जाओगे?’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book