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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


इस आग की लपट जैसे मज़ाक ने जिस्म में शोले पैदा कर दिये। आँखों से चिनगारियाँ निकलने लगीं। धीरज हाथ से छूटा जा रहा था। मगर क़हरे दरवेश बर जाने दरवेश (भिखारी का गुस्सा अपनी जान पर) के मुताबिक सर झुकाकर खड़ा रहा। जितनी दलीलें दिमाग़ में कई दिनों से चुन-चुनकर रखी थीं, सब धरी रह गयीं। बहुत सोचने पर भी कोई नया पहलू ध्यान में न आया। यों खुदा के फ़ज़ल से बेवकूफ़ या कुन्दजेहन नहीं हूँ, अच्छा दिमाग पाया है। इतने सोच-विचार से कोई अच्छी-सी ग़ज़ल हो जाती। पर तबीयत ही तो है, न लड़ी। इत्तफाक से जेब में हाथ डाला तो अचानक याद आ गया कि सिफारिशी खतों का एक पोथा भी साथ लाया हूँ। रोब का दिमाग पर क्या असर पड़ता है इसका आज तजुर्बा हो गया। उम्मीद से चेहरा फूल की तरह खिल उठा। खतों का पुलिन्दा हाथ में लेकर बोला– हुजूर, यह चन्द खत हैं इन्हें मुलाहिज़ा फ़रमा लें।

बड़े बाबू ने बण्डल लेकर मेज़ पर रख दिया और उस पर एक उड़ती हुई नज़र डालकर बोले– आपने अब तक इन मोतियों को क्यों छिपा रक्खा था?

मेरे दिल में उम्मीद की खुशी का एक हंगामा बरपा हो गया। ज़बान जो बन्द थी, खुल गयी। उमंग से बोला– हुजूर की शान-शौकत ने मुझ पर इतना रोब डाल दिया और कुछ ऐसा जादू कर दिया कि मुझे इन खतों की याद न रही। हुजूर से मैं बिना नमक-मिर्च लगाये सच-सच कहता हूँ कि मैंने इनके लिए किसी तरह की कोशिश या सिफ़ारिश नहीं पहुँचायी। किसी तरह की दौड़-भाग नहीं की।

बड़े बाबू ने मुस्कराकर कहा– अगर आप इनके लिए ज़्यादा से ज़्यादा दौड़-भाग करने में भी अपनी ताक़त खर्च करते तो भी मैं आपको इसके लिए बुरा-भला न कहता। आप बेशक बड़े खुशनसीब हैं कि यह नायाब चीज़ आपको बेमांग मिल गईं, इसे ज़िन्दगी के सफ़र का पासपोर्ट समझिए। वाह, आपको खुदा के फ़ज़ल से एक से एक कद्रदान नसीब हुए। आप ज़हीन हैं, सीधे-सच्चे हैं, बेलौस हैं, फ़र्माबरदार है। ओफ्फ़ोह, आपके गुणों की तो कोई इन्तहा ही नहीं है। क़सम खुदा की, आपमें तो तमाम भीतरी और बाहरी कमाल भरे हुए हैं। आपमें सूझ-बूझ गम्भीरता, सच्चाई, चौकसी, कुलीनता, शराफ़त, बहादुरी, सभी गुण मौजूद हैं। आप तो नुमाइश में रखे जाने के क़ाबिल मालूम होते हैं कि दुनिया आपको हैरत की निगाह से देखे तो दाँतों तले उंगली दबाये। आज किसी भले का मुँह देखकर उठा था कि आप जैसे पाकीज़ा आदमी के दर्शन हुए। यह वे गुण हैं जो ज़िन्दगी के हर एक मैदान में आपको शोहरत की चोटी तक पहुँचा सकते हैं। सरकारी नौकरी आप जैसे गुणियों की शान के क़ाबिल नहीं। आपको यह कब गवारा होगा। इस दायरे में आते ही आदमी बिलकुल जानवर बन जाता है। बोलिए, आप इसे मंजूर कर सकते हैं? हरगिज़ नहीं।

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