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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


बड़े बाबू ने मेरी तरफ़ इस अन्दाज़ से देखा जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया का कोई जानवर हूँ और बहुत दिलासा देने के लहजे में बोले– आपकी परवरिश खुदा करेगा। वही सबका रज्ज़ाक है, दुनिया जब से शुरू हुई तब से तमाम शायर, हकीम और औलिया यही सिखाते आये हैं कि खुदा पर भरोसा रख और हम हैं कि उनकी हिदायत को भूल जाते हैं। लेकिन ख़ैर, मैं आपको नेक सलाह देने में कंजूसी न करुँगा। आप एक अख़बार निकाल लीजिए। यक़ीन मानिए इसके लिए बहुत ज़्यादा पढ़े-लिखे होने की ज़रूरत नहीं और आप तो खुदा के फ़ज़ल से ग्रेजुएट हैं। स्वादिष्ट तिलाओं और स्तम्भन-बटियों के नुस्ख़े लिखिए। तिब्बे अकबर में आपको हज़ारों नुस्खे मिलेंगे। लाइब्रेरी जाकर नकल कर लाइए और अख़बार में नये नाम से छापिए। कोकशास्त्र तो आपने पढ़ा ही होगा अगर न पढ़ा हो तो एक बार पढ़ जाइए और अपने अख़बार में शादी के मज़ों के तरीक़े लिखिए। कामेन्द्रिय के नाम जितने ज़्यादा आ सकें, बेहतर है फिर देखिए कैसे डाक्टर और प्रोफेसर और डिप्टी कलेक्टर आपके भक्त हो जाते हैं। इसका ख़्याल रहे कि यह काम हकीमाना अन्दाज़ से किया जाय। ब्योपारी और हकीमाना अन्दाज़ में थोड़ा फ़र्क़ है, ब्योपारी सिर्फ़ अपनी दवाओं की तारीफ़ करता है, हकीम परिभाषाओं और सूक्तियों को खोलकर अपने लेखों को इल्मी रंग देता है। ब्योपारी की तारीफ़ से लोग चिढ़ते हैं, हकीम की तारीफ़ भरोसा दिलाने वाली होती है। अगर इस मामले में कुछ समझने-बूझने की ज़रूरत हो तो रिसाला दरवेश हाज़िर है। अगर इस काम में आपको कुछ दिक्कत मालूम होती हो, तो स्वामी श्रद्धानन्द की खिदमत में जाकर शुद्धि पर आमादगी ज़ाहिर कीजिए– फिर देखिए आपकी कितनी ख़ातिर-तवाज़ो होती है। इतना समझाये देता हूँ कि शुद्धि के लिए फौरन तैयार न हो जाइयेगा। पहले दिन तो दो-चार हिन्दू धर्म की किताबें माँग लाइयेगा। एक हफ़्ते के बाद जाकर कुछ एतराज कीजिएगा। मगर एतराज ऐसे हो जिनका जवाब आसानी से दिया जा सके इससे स्वामीजी को आपकी छान-बीन और जानने की ख़्वाहिश का यक़ीन हो जायेगा। बस, आपकी चांदी है। आप इसके बाद इसलाम की मुख़ालिफ़त पर दो-एक मज़मून या मजमूनों का सिलसिला किसी हिन्दू रिसाले में लिख देंगे तो आपकी ज़िन्दगी और रोटी का मसला हल हो जायेगा। इससे भी सरल एक नुस्ख़ा है– तबलीग़ी मिशन में शरीक हो जाइए, किसी हिन्दू औरत, खासकर नौजवान बेवा, पर डोरे डालिए। आपको यह देखकर हैरत होगी कि वह कितनी आसानी से आपसे मुहब्बत करने लग जाती है। आप उसकी अंधेरी ज़िन्दगी के लिए एक मशाल साबित होंगे। वह उज़्र नहीं करती, शौक से इसलाम क़बूल कर लेगी। बस, अब आप शहीदों में दाखिल हो गए। अगर ज़रा एहतियात से काम करते रहे तो आपकी ज़िन्दगी बड़े चैन से गुज़रेगी। एक ही खेवे में दीनों-दुनिया दोनों ही पार हैं। जनाब लीडर बन जाएँगे वल्लाह, एक हफ़्ते में आपका शुमार नामी-गरामी लोगों में होने लगेगा, दीन के सच्चे पैरो। हज़ारों सीधे-सादे मुसलमान आपको दीन की डूबती हुई किश्ती का मल्लाह समझेंगे। फिर खुदा के सिवा और किसी को ख़बर न होगी कि आपके हाथ क्या आता है और वह कहाँ जाता है और खुदा कभी राज़ नहीं खोला करता, यह आप जानते ही हैं। ताज्जुब है कि इन मौकों पर आपकी निगाह क्यों नहीं जाती! मैं तो बुड्ढा हो गया और अब कोई नया काम नहीं सीख सकता, वर्ना इस वक़्त लीडरों का लीडर होता।

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