कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
मैंने फ़ख्र से कहा– मैं इन चीज़ों का उतना ही पाबन्द हूँ जितना कोई मौलवी हो सकता है। मेरी कोई नमाज़ क़ज़ा नहीं हुई। सिवाय उन वक्तों के जब मैं बीमार था।
बड़े बाबू ने मुस्कराकर कहा– यह तो आपके अच्छे अख़लाक़ ही कह देते हैं। मगर इस दायरे में आकर आपको अपने अक़ीदे और अमल में बहुत कुछ काट-छांट करनी पड़ेगी। यहाँ आपका मज़हब मज़हबियत का जामा अख़्तियार करेगा। आप भूलकर भी अपनी पेशानी को किसी सिजदे में न झुकाएँ, कोई बात नहीं। आप भूलकर भी ज़कात के झगड़े में न फँसें, कोई बात नहीं। लेकिन आपको अपने मज़हब के नाम पर फ़रियाद करने के लिए हमेशा आगे रहना और दूसरों को आमादा करना होगा। अगर आपके ज़िले में दो डिप्टी कलक्टर हिन्दू हैं और मुसलमान सिर्फ़ एक, तो आपका फ़र्ज़ होगा कि हिज़ एक्सेलेंसी गवर्नर की ख़िदमत में एक डेपुटेशन भेजने के लिए कौम के रईसों में आमादा करें। अगर आपको मालूम हो कि किसी म्युनिसिपैलिटी ने क़साइयों को शहर से बाहर दूकान रखने की तजवीज़ पास कर दी है तो आपका फ़र्ज़ होगा कि कौम के चौधरियों को उस म्युनिसिपैलिटी का सिर तोड़ने के लिए तहरीक करें। आपको सोते-जागते, उठते-बैठते जाति-प्रेत का राग अलापना चाहिए। मसलन इम्तहान के नतीजों में अगर आपको मुसलमान विद्यार्थियों की संख्या मुनासिब से कम नज़र आये तो आपको फ़ौरन चांसलर के पास एक गुमनाम ख़त लिख भेजना होगा कि इस मामले में ज़रूर ही सख़्ती से काम लिया गया है। यह सारी बातें उसी इनटुइशनवाली शर्त के भीतर आ जाती हैं। आपको साफ़-साफ़ शब्दों में या इशारों से यह काम करने से लिए हिदायत न की जाएगी। सब कुछ आपकी सूझ-सूझ पर मुनहसर होगा। आपमें यह जौहर होगा तो आप एक दिन ज़रूर ऊंचे ओहदे पर पहुँचेंगे। आपको जहाँ तक मुमकिन हो, अंग्रेज़ी में लिखना और बोलना पड़ेगा। इसके बग़ैर हुक्काम आपसे खुश न होंगे। लेकिन क़ौमी ज़बान की हिमायत और प्रचार की सदा आपकी ज़बान से बराबर निकलती रहनी चाहिए। आप शौक़ से अख़बारों का चन्दा हज़म करें, मंगनी की किताबें पढ़ें चाहे वापसी के वक़्त किताब के फट-चिंथ जाने के कारण आपको माफ़ी ही क्यों न मांगनी पड़े, लेकिन ज़बान की हिमायत बराबर ज़ोरदार तरीक़े से करते रहिए। खुलासा यह कि आपको जिसका खाना उसका गाना होगा। आपको बातों से, काम से और दिल से अपने मालिक की भलाई में और मज़बूती से उसको जमाये रखने में लगे रहना पड़ेगा। अगर आप यह ख़याल करते हों कि मालिक की खिदमत के ज़रिये कौम की खिदमत करूँगा तो यह झूठ बात है, पागलपन है, हिमाक़त है। आप मेरा मतलब समझ गये होंगे। फ़रमाइए, आप इस हद तक अपने को भूल सकते हैं?
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