कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
स्त्री का अन्तिम शस्त्र रोना है। जहाँ सब यत्न व्यर्थ हो जाते हैं वहाँ यह युक्ति सफल होती है। सुलक्षणा को रोते हुए देखकर वीरमदेव नर्म हो गये और धीरे से बोले, ‘इसमें दो बातें शंकनीय हैं। पहली तो यह कि तुम मुसलमान हो चुकी हो। यह वस्त्र मैं नहीं पहन सकता। दूसरे मैं निकल गया तो मेरी विपत्ति तुम पर टूट पड़ेगी।’
सुलक्षणा ने उत्तर दिया, ‘मैं अभी तक अपने धर्म पर स्थिर हूँ। यह वस्त्र तुम्हें जलाने के लिए पहने थे, परन्तु अब अपने पर लज्जित हूँ। इसलिए तुम्हें यह शंका न होनी चाहिए।’
‘और दूसरी बात?’
‘मुझे तनिक भी कष्ट न होगा। मैं सहज ही में प्रातःकाल छूट जाउँगी।’
सुलक्षणा ने झूठ बोला, परन्तु यह झूठ अपने लिए नहीं, दूसरे के लिये था। यह पाप था, परंतु जिस पर सैकड़ों पुण्य निछावर किये जा सकते हैं। वीरमदेव को विवश होकर उसके प्रस्ताव के साथ सहमत होना पड़ा।
जब उन्होंने वस्त्र बदल लिये, तो सुलक्षणा ने कहा, ‘यह अंगूठी दिखा देना।’
वीरमदेव बुरका पहनकर निकले। सुलक्षणा ने शांति का श्वास लिया। वह पिशाचनी से देवी बनी। बुराई और भलाई में एक पग का अन्तर है।
सुलक्षणा की आँखें अब खुलीं और उसे ज्ञान हुआ कि मैं क्या करने लगी थी, कैसा घोर पाप, कैसा अत्याचार! राजपूतों के नाम को कलंक लग जाता। आर्यस्त्रियों का गौरव मिट जाता। सीता-रुक्मिणी की आन जाती रहती। क्या प्रेम का परिणाम कर्म-धर्म का विनाश है? क्या जो प्रेम करते हैं, वह हत्या भी कर सकते हैं? क्या जिसके मन में प्रेम के फूल खिलते हैं, वहाँ उजाड़ भी हो सकता है? क्या जहाँ प्रीति की चाँदनी खिलती है, जहाँ आत्म-बलिदान के तारे चमकते हैं, वहाँ अंधकार भी हो सकता है? जहाँ स्नेह की गंगा बहती है, जहाँ स्वार्थ-त्याग की तरंगें उठती हैं, वहाँ रक्त की पिपासा भी रह सकती है? जहाँ अमृत हो, वहाँ विष की आवश्यकता है? जहाँ माधुर्य हो, वहाँ कटुता का निवास क्योंकर? स्त्री प्रेम करती है, सुख देने के लिए। मैंने प्रेम किया, सुख लेने के लिए। प्रकृति के प्रतिकूल कौन चल सकता है? मेरे भाग्य फूट गये परंतु जिनसे मेरा प्रेम है, उनका क्यों बाल-बाँका हो? प्रेम का मार्ग विकट है, इस पर चलना बिरले मनुष्य का काम है। जो अपने प्राणों को हथेली पर रख ले, वह प्रेम का अधिकारी है।
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