कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
जो संसार के कठिन-से-कठिन काम करने को उद्यत हो, वह प्रेम का अधिकारी है। प्रेम बलिदान सिखाता है, हिसाब नहीं सिखाता। प्रेम मस्तिष्क को नहीं हृदय को छूता है। मैंने प्रेमपथ पर पैर रखा, फल मुझे मिलना चाहिए। वीरमदेव नेस विवाह किया, पति बना, संतानवान हुआ, अब उसको पहले की प्रेम की बातें सुनाना मूर्खता नहीं तो क्या है। मैंने पाप किया है, उसका प्रायश्चित करूँगी। रोग की औषधि कड़वी होती है।
इतने में कैदखाने का दरवाजा खुला। पिछले पहर का समय था। आकाश से तारागण लोप हो गये थे। कैदखाने का दीपक बुझ गया और कमरे में सुलक्षणा के निराश हृदय के समान अंधकार छा गयी, प्रायश्चित का समय आ गया है, उसने कम्बल को लपेट लिया और चुप-चाप लेट गयी। घातक के हाथ में दीपक था, उसने ऊँचा करके देखा, कैदी सो रहा है। पाप कर्म अधंकार में ही किये जाते हैं।
जल्लाद धीरे-धीरे आगे बढ़ा और सुलक्षणा के पास बैठ गया। उसने कम्बल सरकाकर उसका गला नंगा किया और उस पर छुरी फेर दी। सुलक्षणा ने अपने रक्त से प्रायश्चित किया आप मरकर हृदयेश्वर को बचाया। जिसके रुधिर की प्यासी हो रही थी, जिसकी मृत्यु पर आनंद मनाना चाहती थी, उसकी रक्षा के लिए सुलक्षणा ने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। प्रेम के खेल निराले हैं।
पिछले पहर का समय था। उषाकाल की पहली रेखा आकाश पर फूट पड़ी। जल्लाद सिर लपेटे हुए अलाउद्दीन के पास पहुँचा और झुककर बोला, ‘वीरमदेव का सिर हाज़िर है।’
अलाउद्दीन ने कहा, ‘कपड़ा उतारो।’
जल्लाद ने कपड़ा हटाया। एक बिजली कौंध गयी, अलाउद्दीन कुर्सी से उछल पड़ा। यह वीरमदेव का नहीं सुलक्षणा का सिर था। अलाउद्दीन बहुत हताश हुआ। कितने समय के पश्चात आशा की श्यामल भूमि सामने आयी थी परन्तु देखते-ही-देखते निराशा में बदल गयी। राजपूतनी के प्रतिकार का कैसा हृदय वेधक दृश्य था! प्रेम-जाल में फँसी हुई हिंद स्त्री का प्रभाव-पूर्ण बलिदान, पतति होने वाली आत्मा का पश्चात्ताप!
यह समाचार कलानौर पहुँचा, तो इस पर शोक किया गया, और वीरमदेव कई दिन तक रोते रहे। राजवती ने एक मंदिर बनाकर उसके ऊपर सुलक्षणा नाम खुदवा दिया। अब न वीरमदेव इस लोक में है न राजवती, परंतु वह मन्दिर अभी तक विद्यमान है, और लोगों को राजपूतनी के भयंकर प्रायश्चित का स्मरण करा रहा है।
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