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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


मिसरानी को बहुत ही तंग करती है। पर मुश्किल यह है कि मिसरानी को इस बात की बिलकुल शिकायत नहीं है। इस कारण मुझे उसको डाँटते-धमकाने का पूरा मौका नहीं मिलता। वह बे-मतलब चौके में घुस जाती है, कभी उँगली जला लेती है, कभी नमक अपने हाथ से डालने की जिद करके दाल में अधिक नमक डाल देती है। आटा सानते-सानते जब बहा-बहा फिरने के लायक हो जाता है, तब मिसरानी से सहायता की प्रार्थना करती है और मिसरानी उसके दायें कान को हँसते-हँसते अपने बायें हाथ से जरा टेढ़ा-तिरछा करके आटा ठीक कर देती है। मालकिन के मुलायम कानों को मसलने का जब अधिकार-संयोग मिले तब उस अवसर को मिसरानीजी जान-बूझकर क्यों खोये? उन्हें दिक होना पड़ता है तो हों।

लेकिन मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता, जैसे जहाँ जायगी वहाँ इसे रोटी ही बनानी पड़ेगी? फिर क्यों फिजूल ऐसे कामों में हाथ डालती है?–यह तो होता नहीं कि टेनिस का अभ्यास बढ़ा ले, शायद उसी में चमक उठे और अखबारों में नाम हो जाये, क्या ताज्जुब कोई ‘कप’ ही मिल जाय। इसलिए मैं उसे काफी गुरु-मुद्रा के साथ धमका देता हूँ। पर वहीं जवाब दे देती है, अगर मेरी निज की लड़की इस तरह मुझे जवाब देती तो मैं थप्पड़ से उसका मुँह लाल कर देता। फिर ललिता के मुँह से जवाब सुनकर न मुझे ज्यादा गुस्सा होता है, न बहुत अचरज! गुस्सा होता भी तो मैं कुछ कर भी तो नहीं सकता। मेरे समीप वह भाई साहब की स्मृति है। उसकी प्रतिमूर्ति है, इसलिए उसका जवाब सुनकर मैं चुप रह जाता हूँ।

यह लड़की जरा भी दुनिया नहीं समझती। वह समझती यह है कि उसकी कोर्स की किताबों में, उसके कल्पना क्षेत्र में ही सारी दुनिया बन्द है। उससे बहस कौन करे? कुछ समझती ही नहीं, करें अपने जी का। पर डिक?

डिक हमारे जिले के डिप्टी कमिश्नर का लड़का है। अभी एक वर्ष से विलायत से आया है। आक्सफोर्ड में पढ़ता है। पिता ने हिन्दुस्तान देखने के लिए बुलाया है। पिता की राय है, डिक आई० सी० एस० में जाय।

बड़ा अच्छा है। डिक को घमंड नाम को भी नहीं है। बड़ा मृदुभाषी, सुशील, शिष्ट। यह हर तरह से सुन्दर जँचता है।

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