लोगों की राय

कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

14 पाठक हैं

प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


‘मेरा लड़का–पुरुषसिंह।’ शायद पुरुषसिंह वह ठीक न बोल सका हो।

तब उस ने बुड्ढे से कहा–‘आओ, चलें, देखे।’

हम चुपचाप उसके साथ चले।

सिंध सामने ही तो है। एक बड़ी-सी चट्टान के पास ऐसे खड़े हो गये कि उन दोनों की निगाहों से बचे रहें।

‘यू पोरस, वह क्या बह रहा है?–लाओगे?–ला सकते हो? कैन यू?’

‘वह क्या बात?–लो!’

ऊँची धोती पर एक लम्बा-सा कुर्ता तो पहने ही था। उतारा, और उस सिंध के हिंस्त्र प्रवाह में कूद पड़ा। लकड़ी का टुकड़ा था, किनारे से १५ गज दूर तो होगा, हमारे देखते-देखते ले आया।

हँसता-दौड़ता आया ललिता के पास। बोला– ले आया! –बस? –पर दूँगा नहीं! इतना कहकर फिर उसने वह लकड़ी भरपूर रूप से धार में फेंक दी।

ललिता ने कहा–‘यू नॉटी!’

मैं अपने को सँभाल न सका। चट्टान के पीछे से ही बोल पड़ा–‘ यू नाटि-एस्ट...!’ और बोलने के साथ ही हम तीनों उसके सामने आविर्भूत हो पड़े।

Hallo, Uncle!... and oh, Hallo you Dick! How d’ ye do dear Dick?... and oh my dear father, what luck!

कहकर उसने बुड्ढे का हाथ चूमकर पहले अभिवादन किया।

‘See you my Porus, Dick! king porus of history, mind you! Is he not as fair as you?’ डिक
को वाग्विमूढ छोड़ पोरस की और मुड़कर ‘इंट्रोडक्शन’ देते हुए कहा–My unclc मेरे चाचा and that my dear friend Dick और वह डिक मेरा खूब प्यारा दोस्त।’

घुटने से ऊपर लायी हुई गीली धोती और नंगा बदन पोरस डिक अँगरेज और मुझ जज के सामने इस परिचय पर हँस दिया। मानो उसे हमारा परिचय खुशी से स्वीकार है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book