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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


‘कुछ खाया नहीं! इतने बड़े अमीर के यहाँ रहता है और दिन-भर तुझे खाने को नहीं मिला?’

‘यही तो मैं कहने गया था जमादार के पास, मार तो रोज ही खाता हूँ।

आज तो खाना ही नहीं मिला कुँवर साहब का ओवर-कोट लिये खेल में दिन-भर साथ रहा। सात बजे लौटा, तो अब भी नौ बजे तक कुछ काम करना पड़ा। आटा रख नहीं सका था। रोटी बनती तो कैसे? जमादार से कहने गया था भूख की बात कहते-कहते बालक के ऊपर उसकी दीनता और भूख ने एक साथ ही जैसे आक्रमण कर दिया। वह फिर हिचकियाँ लेने लगा।

शराबी उसका हाथ पकड़कर घसीटता हुआ गली में ले चला। एक गंदी कोठरी का दरवाजा ढकेलकर, बालक को लिए हुए वह भीतर पहुँचा। टटोलते हुए सलाई से मिट्टी की ढेबरी जलाकर वह फटे कम्बल के नीचे से कुछ खोजने लगा एक पराठे का टुकड़ा मिला। शराबी उसे बालक के हाथ में देकर बोला–‘तब तक तू इसे चबा; मैं तेरा गढ़ा भरने के लिए कुछ और ले आऊँ–

‘सुनता है रे छोकरे। रोना मत, रोयेगा तो खूब पीटूँगा। मुझसे रोने से बड़ा बैर है। पाजी कहीं का, मुझे भी रुलाने का...’

‘शराबी गली के बाहर भागा। उसके हाथ में एक रुपया था। बारह आने का एक देशी अद्धा और दो आने की चाय, दो आने की पकौड़ी...नहीं-नहीं आलू मटर...अच्छा, न सही। चारों आने का मांस ही ले लूगाँ, पर यह छोकरा! इसका गढ़ा जो भरना होगा, यह कितना खायगा और क्या खायगा? ओ! आज तक तो कभी मैंने दूसरों के खाने का सोच किया ही नहीं। तो क्या ले चलूँ? पहले एक अद्धा ही ले चलूँ।’

इतना सोचते-सोचते उसकी आंखों पर बिजली के प्रकाश की झलक पड़ी। उसने अपने को मिठाई की दूकान पर खड़ा पाया। वह शराब का अद्धा लेना भूल कर मिठाई पूरी खरीदने लगा। नमकीन लेना भी न भूला। पूरा एक रुपये का सामान लेकर वह दूकान से हटा। जल्द पहुँचने के लिए एक तरह से दौड़ने लगा। अपनी कोठरी में पहुँच उसने दोनों की पाँत बालक के सामने सजा दी। उसकी सुगंध से बालक के गले में एक तरावट पहुँची। वह मुस्कराने लगा।

शराबी ने मिट्टी की गगरी से पानी उँडेलते हुए कहा–‘नटखट कहीं का, हँसता है। सोंधी बास नाक में पहुँची न। ले खूब ठूँसकर खा ले और फिर रोया कि पिटा!’

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